Post by : Shivani Kumari
हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में बेटियों को पैतृक संपत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा, यह सुप्रीम कोर्ट का 8 अक्टूबर 2025 को सुनाया गया फैसला है जिसमें हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के 23 जून 2015 के निर्णय को खारिज कर दिया गया। हाईकोर्ट ने पैरा 63 में कहा था कि आदिवासी क्षेत्रों की बेटियां हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत पैतृक संपत्ति में हकदार होंगी, न कि स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार, ताकि महिलाओं को सामाजिक अन्याय और शोषण से बचाया जा सके। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा शामिल थे, ने इसे विधिक रूप से असंगत बताते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 2(2) के अनुसार यह कानून अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता, जब तक केंद्र सरकार राजपत्र अधिसूचना न जारी करे। गूगल ट्रेंड्स पर 'हिमाचल प्रदेश आदिवासी बेटियों को पैतृक संपत्ति अधिकार सुप्रीम कोर्ट फैसला 2025', 'ट्राइबल महिलाओं को संपत्ति हक हिंदू सक्सेशन एक्ट', 'जनजातीय क्षेत्रों में बेटियों की विरासत अधिकार', 'हिमाचल हाईकोर्ट पैतृक संपत्ति निर्णय खारिज', 'आदिवासी महिलाओं के उत्तराधिकार कानून', 'सुप्रीम कोर्ट ट्राइबल बेटियां संपत्ति हिस्सा', 'हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम जनजातीय बेटियों पर लागू क्यों नहीं', 'कस्टमरी लॉ vs हिंदू सक्सेशन एक्ट हिमाचल', 'लाहौल स्पीति किन्नौर महिलाओं के संपत्ति अधिकार', 'बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हक आदिवासी क्षेत्र' जैसे कीवर्ड्स की खोज में पिछले सप्ताह 120% से अधिक वृद्धि दर्ज की गई है। यह फैसला नवांग और अन्य बनाम बहादुर और अन्य मामले में आया, जहां 23 सितंबर 2015 को अपील दायर की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि जनजातीय समुदायों में संपत्ति उत्तराधिकार के मामलों में कस्टमरी लॉ यानी रिवाजे आम और सामाजिक परंपराएं ही लागू होंगी। संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत अनुसूचित जातियों-जनजातियों की सूची में बदलाव केवल राष्ट्रपति की अधिसूचना से संभव है, न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप का अधिकार नहीं। अदालत ने सवारा जनजाति सहित किसी भी ट्राइबल समुदाय को अधिनियम के दायरे में लाने के लिए अधिसूचना न होने का हवाला दिया। पूर्व मामलों जैसे मधु किश्वर बनाम बिहार राज्य, अहमदाबाद विमेन एक्शन ग्रुप बनाम भारत संघ, और हालिया तिरथ कुमार बनाम दादूराम (2024 एससीसी ऑनलाइन एससी 3810) का उल्लेख करते हुए कहा कि केंद्र सरकार की अधिसूचना के बिना अधिनियम ट्राइबल्स पर लागू नहीं। याचिकाकर्ता सुनील करवा और नवांग बोध ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, 'यह निर्णय जनजातीय समुदायों की परंपराओं और सामाजिक ढांचे की रक्षा करने वाला है।' सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, 'अधिनियम की धारा 2(2) के शब्द स्पष्ट हैं, हाईकोर्ट का आदेश अपील के मुख्य प्रश्नों से हटकर और कानून के विपरीत था।' यह फैसला हिमाचल के ट्राइबल क्षेत्रों जैसे लाहौल-स्पीति, किन्नौर में लागू होगा, जहां वजिब उल उर्ज (1926 का कस्टमरी लॉ) पुरुषों को ही पैतृक संपत्ति का हक देता है।
इस निर्णय से हिमाचल प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में ट्राइबल महिलाओं के पैतृक संपत्ति अधिकार प्रभावित होंगे, क्योंकि अब बेटियां स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार ही हिस्सा पा सकेंगी, न कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत समान बेटे जैसा अधिकार। किन्नौर में जश्थांग (बड़े बेटे का हक) और कोनचांग (छोटे बेटे का हक) जैसी प्रथाएं जारी रहेंगी, जहां संपत्ति केवल पुरुष वारिसों में बंटती है। इससे महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां कृषि मुख्य आजीविका है। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह फैसला केवल उत्तराधिकार तक सीमित है, ट्राइबल्स के अन्य विशेषाधिकार प्रभावित नहीं होंगे। महिला कार्यकर्ता रतन मंजरी, किन्नौर की महिला कल्याण परिषद की अध्यक्ष, ने कहा कि 2015 के हाईकोर्ट फैसले से उम्मीद जगी थी, लेकिन अब संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि 2005 के हिंदू सक्सेशन संशोधन अधिनियम से गैर-ट्राइबल बेटियों को समान हक मिला, लेकिन ट्राइबल्स में वजिब उल उर्ज जैसी पुरानी प्रथाएं बाधा बनी हुई हैं। गूगल पर 'ट्राइबल महिलाओं पैतृक संपत्ति भेदभाव हिमाचल 2025', 'आदिवासी बेटियां संपत्ति हक सुप्रीम कोर्ट', 'किन्नौर वजिब उल उर्ज महिलाओं पर प्रभाव', 'हिमाचल ट्राइबल उत्तराधिकार कानून', 'जनजातीय बेटियों विरासत अधिकार असमानता' जैसे सर्च में रुचि बढ़ी है।
यह मामला 2015 से लंबित था, जब हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के मामले में फैसला देते हुए व्यापक टिप्पणी की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने अपील के दायरे से बाहर जाकर निर्णय दिया, जो विधिक रूप से गलत था। लाइव लॉ और मनीकंट्रोल जैसी रिपोर्ट्स में पुष्टि हुई कि यह फैसला ट्राइबल कस्टम्स को प्राथमिकता देता है। 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने विनीता शर्मा मामले में गैर-ट्राइबल बेटियों को जन्म से हक दिया, लेकिन ट्राइबल्स के लिए अलग रहा। 2023 में भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को धारा 2(2) की समीक्षा का निर्देश दिया था, लेकिन अधिसूचना न आने से स्थिति यथावत। किन्नौर और लाहौल-स्पीति में महिलाएं वर्षों से प्रदर्शन कर रही हैं, जैसे 2012 में गवर्नर को ज्ञापन और 2023 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात। महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में यह फैसला विवादास्पद है, क्योंकि एक तरफ ट्राइबल संस्कृति संरक्षण, दूसरी तरफ लैंगिक समानता। गूगल ट्रेंड्स पर 'हिमाचल आदिवासी महिलाओं संपत्ति अधिकार संघर्ष', 'सुप्रीम कोर्ट ट्राइबल बेटियां पैतृक हक 2025', 'हिंदू सक्सेशन एक्ट धारा 2(2) जनजातीय प्रभाव', 'कस्टमरी लॉ महिलाओं शोषण हिमाचल', 'ट्राइबल विरासत कानून असमानता' जैसे कीवर्ड्स ट्रेंडिंग हैं।
भविष्य में केंद्र सरकार अधिसूचना जारी कर सकती है, जिससे ट्राइबल बेटियों को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हक मिल सके। फिलहाल, हिमाचल के जनजातीय इलाकों में पैतृक संपत्ति उत्तराधिकार कस्टमरी लॉ पर निर्भर रहेगा। यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और 15 (भेदभाव निषेध) से जुड़े सवाल उठाता है, लेकिन अदालत ने कहा कि ट्राइबल्स के लिए विशेष प्रावधान संरक्षण के लिए हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग और महिला संगठन इस पर बहस कर रहे हैं। यदि आप 'हिमाचल ट्राइबल बेटियां संपत्ति अधिकार अपडेट', 'सुप्रीम कोर्ट फैसला पैतृक संपत्ति जनजातीय 2025', 'आदिवासी महिलाओं उत्तराधिकार कानून हिमाचल', 'हाईकोर्ट vs सुप्रीम कोर्ट ट्राइबल विरासत' जैसे टॉपिक्स पर और जानकारी चाहें, तो बताएं।
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