देश के शीर्ष एक फीसदी अमीरों की संपत्ति 23 वर्षों में 62 प्रतिशत बढ़ी
देश के शीर्ष एक फीसदी अमीरों की संपत्ति 23 वर्षों में 62 प्रतिशत बढ़ी

Post by : Shivani Kumari

Nov. 5, 2025 11:26 a.m. 101

भारत में आर्थिक असमानता अब एक गंभीर सामाजिक चुनौती बन चुकी है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार देश के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति पिछले तेईस वर्षों में बासठ प्रतिशत तक बढ़ गई है जबकि आम जनता की आय लगभग स्थिर बनी हुई है। यह अंतर केवल संख्याओं का नहीं बल्कि भारत के सामाजिक और आर्थिक संतुलन पर सीधा प्रभाव डालने वाला संकेत है। आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ने के बावजूद उसका फायदा सीमित वर्ग तक सिमट गया है। बड़े उद्योगपतियों और कॉरपोरेट घरानों की कमाई लगातार बढ़ती रही है जबकि छोटे कारोबारियों, किसानों और मजदूर वर्ग की स्थिति जस की तस बनी हुई है।

हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में यह असमानता और भी स्पष्ट दिखाई दे रही है। यहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः पर्यटन, बागवानी और सरकारी नौकरियों पर निर्भर है। महामारी के बाद स्थानीय रोजगार के अवसर घटे हैं, महंगाई बढ़ी है और युवाओं का पलायन तेज हुआ है। सेब उत्पादकों की लागत बढ़ी है लेकिन दामों में स्थिरता ने उनकी आय घटा दी है। इसी तरह छोटे व्यापारियों को भी बड़े रिटेल नेटवर्क और ऑनलाइन कंपनियों से प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ रही है।

आर्थिक विश्लेषक डॉ. अशोक ठाकुर का कहना है कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर भले ही कागज़ पर प्रभावशाली दिखे परंतु जब आम नागरिक की क्रय शक्ति घटती है तो विकास का वास्तविक अर्थ समाप्त हो जाता है। उनका मानना है कि अमीर और गरीब के बीच की दूरी न केवल आर्थिक असंतुलन पैदा कर रही है बल्कि सामाजिक असुरक्षा भी बढ़ा रही है।

ऑक्सफैम इंडिया की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि भारत की कुल संपत्ति का तिहत्तर प्रतिशत हिस्सा केवल दस प्रतिशत आबादी के पास है जबकि सबसे गरीब पचास प्रतिशत आबादी के पास केवल छह प्रतिशत संपत्ति बची है। यह आंकड़े यह साबित करते हैं कि महामारी के बाद जहां एक वर्ग की संपत्ति में तेजी से बढ़ोतरी हुई, वहीं दूसरे वर्ग की आर्थिक स्थिति और कमजोर हुई है।

हिमाचल में बेरोजगारी का स्तर पिछले पांच वर्षों में धीरे-धीरे बढ़ा है। राज्य के कई शिक्षित युवा बेहतर अवसरों की तलाश में दिल्ली, चंडीगढ़ और पंजाब की ओर पलायन कर रहे हैं। इससे स्थानीय बाजारों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ा है। सरकार की स्वरोजगार योजनाएं जैसे मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम सीमित लाभार्थियों तक ही पहुंच पा रही हैं।

आम लोगों में बढ़ती महंगाई को लेकर नाराज़गी भी साफ झलकती है। रोज़मर्रा के खर्चे जैसे बिजली, ईंधन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की लागत बढ़ने से परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ा है। ग्रामीण परिवारों को कर्ज़ पर निर्भर रहना पड़ रहा है जबकि शहरी मध्यम वर्ग बचत करने में असमर्थ हो गया है।

शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी यह असमानता गहराई से महसूस की जा रही है। गरीब परिवारों के बच्चे अब भी उच्च शिक्षा और निजी स्कूलों की फीस वहन नहीं कर पा रहे। डिजिटल शिक्षा की दिशा में हुए बदलावों ने शहरों को तो लाभ पहुँचाया है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट और उपकरणों की कमी अब भी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।

केंद्र सरकार का दावा है कि प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, जन धन योजना और पीएम किसान जैसी योजनाओं से गरीब वर्ग को राहत मिल रही है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इन योजनाओं का दीर्घकालिक प्रभाव तभी दिखाई देगा जब रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में समान अवसर सुनिश्चित किए जाएं।

भारत में आर्थिक असमानता केवल आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक समस्या भी बन चुकी है। जब समाज के कुछ वर्ग तेजी से अमीर होते जाते हैं और अन्य वर्ग स्थिर रह जाते हैं, तब सामाजिक तनाव बढ़ना स्वाभाविक है। इसका असर राजनीतिक निर्णयों, सामाजिक विश्वास और लोकतंत्र की स्थिरता पर भी पड़ता है।

विशेषज्ञों के अनुसार सरकार को अब नीतिगत स्तर पर बड़े बदलावों की ज़रूरत है। कर प्रणाली को प्रगतिशील बनाना, ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाना और महिलाओं के लिए समान रोजगार अवसर सुनिश्चित करना ऐसे कदम हैं जिनसे असमानता को कम किया जा सकता है।

हिमाचल जैसे राज्यों में स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देना आर्थिक संतुलन की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है। हस्तशिल्प, जैविक खेती और इको-टूरिज्म जैसे क्षेत्रों में संभावनाएं हैं, लेकिन इनके लिए दीर्घकालिक नीति और पूंजी निवेश की आवश्यकता है।

अंततः यह समझना होगा कि भारत का विकास तभी सार्थक है जब उसका लाभ हर वर्ग तक पहुँचे। केवल कुछ लोगों की समृद्धि देश की प्रगति का प्रमाण नहीं हो सकती। असली विकास वही है जिसमें हर नागरिक को सम्मानजनक जीवन, समान अवसर और आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हो। हिमाचल से लेकर दिल्ली तक हर राज्य में नीति निर्धारकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास की धारा सबके लिए समान रूप से बहे, तभी भारत का लोकतंत्र और सामाजिक संरचना मजबूत रह पाएगी। और पढ़ें

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