Post by : Shivani Kumari
एआई तकनीक ने हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित त्रिलोकीनाथ मंदिर में रखे लगभग 500 वर्ष पुराने शिव स्तुति शिलालेख का रहस्य उजागर कर इतिहास के एक प्राचीन अध्याय को फिर से जीवित कर दिया है। यह वही मंदिर है जो भगवान शिव की त्रिमुखी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है और जिसका निर्माण 1520 ईस्वी के आसपास राजा अजबर सेन के काल में माना जाता है।
शिलालेख में भगवान शिव, गणेश और कल्याणकारी वैदिक मंत्रों की 16 पंक्तियाँ अंकित हैं। समय के साथ यह लेख धुंधला हो गया था और अब तक कोई भी इसे पूरी तरह पढ़ नहीं सका था। लेकिन कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) ने इसे संभव कर दिखाया। डॉ. पारसल अरोड़ा की अगुवाई में विशेषज्ञों की एक टीम ने आधुनिक एआई टूल्स की मदद से इस शिलालेख के हर शब्द और अक्षर को डिजिटल रूप में पुनर्निर्मित किया।
शोधकर्ताओं ने बताया कि इस शिलालेख में कुल 4622 संस्कृत अक्षर हैं और 13वीं पंक्ति में विशेष रूप से भगवान शिव और गणेश की स्तुति से जुड़ा वैदिक पाठ दर्ज है। एआई एल्गोरिदम के जरिए टूटी पंक्तियों को जोड़ा गया और उनके अर्थों को पुनर्स्थापित किया गया। डॉ. अरोड़ा का कहना है कि पहले शब्दों को स्कैन करके अलग किया गया, फिर उन्हें संस्कृत रूप में अनुवादित किया गया, जिससे पूरा अर्थ उजागर हो सका।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस तकनीक की पुष्टि करते हुए कहा कि एआई की मदद से अब प्राचीन शिलालेखों को 60 प्रतिशत से अधिक सटीकता के साथ पढ़ना संभव हो गया है। यह खोज भारतीय शिलालेख विज्ञान (Epigraphy) और डिजिटल हेरिटेज संरक्षण के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। एएसआई के एक अधिकारी ने बताया कि आने वाले वर्षों में यह तकनीक उत्तर भारत के अन्य प्राचीन मंदिरों में भी उपयोग की जाएगी।
त्रिलोकीनाथ मंदिर में मिले इस शिलालेख में अंकित पंक्तियाँ धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें शांति, कल्याण और संरक्षण से जुड़े वैदिक मंत्र शामिल हैं। इतिहासकारों के अनुसार, यह शिलालेख उस युग की धार्मिक मान्यताओं, सामाजिक संरचना और आध्यात्मिक विचारों को दर्शाता है। इस अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता है कि हिमाचल प्रदेश में उस समय शैव परंपरा का गहरा प्रभाव था।
डिजिटल आर्कियोलॉजी के विशेषज्ञों का कहना है कि इस खोज से भारत के प्राचीन मंदिरों और लेखों के संरक्षण के लिए नई दिशा मिलेगी। अनुमान है कि अगले कुछ वर्षों में एआई तकनीक की मदद से भारत के करीब 1200 से अधिक शिलालेखों का पुनर्पाठ संभव होगा। इससे भारतीय इतिहास की एक नई डिजिटल परत खुल सकेगी और भविष्य में पुरातात्त्विक अनुसंधान में तेज़ी आएगी।
यह खोज इस बात का उदाहरण है कि परंपरा और तकनीक जब साथ मिलती हैं तो अतीत के रहस्य नए रूप में सामने आते हैं। एआई अब सिर्फ एक वैज्ञानिक उपकरण नहीं, बल्कि संस्कृति को पुनर्जीवित करने का माध्यम बन चुका है। त्रिलोकीनाथ मंदिर का यह प्राचीन शिलालेख अब न केवल हिमाचल बल्कि पूरे भारत की आध्यात्मिक धरोहर का हिस्सा बन गया है।
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