सरकाघाट का चंद्र बना इलाक़े का ‘बुलडोज़र बेटा’, अपने खर्चे से बहाल कराई बंद पड़ी 30 सड़कें
सरकाघाट का चंद्र बना इलाक़े का ‘बुलडोज़र बेटा’, अपने खर्चे से बहाल कराई बंद पड़ी 30 सड़कें

Post by : Shivani Kumari

Nov. 3, 2025 11:52 a.m. 351

सरकाघाट के पहाड़ी इलाक़ों में पिछले सालों से बंद पड़ी सड़कों की वजह से ग्रामीणों को अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। मानसून और भूस्खलन के चलते कई मार्ग महीनों तक अवरुद्ध रहते थे, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं, स्कूलों और बाजार तक पहुंच सीमित हो जाती थी। इस स्थिति में चंद्र शर्मा ने अपने निजी खर्च से मशीनरी और श्रम का इंतजाम किया और 30 बंद सड़कों को बहाल किया। ग्रामीणों के अनुसार, अब बच्चों का स्कूल जाना सुरक्षित हो गया है और अस्पताल पहुंचना आसान हो गया है। स्थानीय व्यापार और कृषि उत्पाद अब जल्दी और सुरक्षित तरीके से बाजारों तक पहुँच रहे हैं।

चंद्र शर्मा की पहल ने स्थानीय प्रशासन की धीमी गति की समस्याओं को उजागर किया। हिमाचल प्रदेश में 2025 तक लगभग 600 प्रभावित सड़क मार्ग हैं, जिन्हें भूस्खलन और बारिश से नुकसान हुआ। राज्य सरकार की हिमाचल सड़क परियोजनाएँ कुछ मार्गों को बहाल कर रही हैं, लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में संपर्क मार्गों की कमी अभी भी चुनौती बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि निजी पहल और सामुदायिक सहयोग से सरकारी परियोजनाओं की गति बढ़ाई जा सकती है। डॉ. रंजना कुमारी बताती हैं, “स्थानीय नेतृत्व और संसाधनों का सही इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क सुधार और विकास परियोजनाओं को तीव्र गति दे सकता है। यह मॉडल अन्य पहाड़ी जिलों में भी अपनाया जा सकता है।”

स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया पर चंद्र शर्मा की पहल को व्यापक सराहना मिली है। ग्रामीणों का कहना है कि यह पहल दिखाती है कि यदि स्थानीय नेतृत्व सक्रिय हो और निजी संसाधन सही दिशा में उपयोग किए जाएँ तो सरकारी योजनाओं से भी ज्यादा असरदार बदलाव संभव है। सरकाघाट की शिक्षिका रितु कुमारी कहती हैं, “बच्चों को अब स्कूल जाने में सुरक्षित और कम समय लगता है। यह पहल न केवल सड़क सुधार है, बल्कि हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार का प्रतीक भी है।”

सड़कों के बहाल होने से स्थानीय व्यापार और पर्यटन गतिविधियों में तेजी आई है। सरकाघाट के हरे-भरे इलाके में पर्यटन जिले की GDP का लगभग 15% योगदान देता है और बंद सड़कें इसके लिए बाधक थीं। 2025 के पहले नौ महीनों में पर्यटक आगमन में 20% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिससे स्थानीय होटल, कैफे और वाहन सेवा उद्योग को लाभ हुआ है। किसानों के लिए भी यह विकास महत्वपूर्ण रहा है। अब उनके कृषि उत्पाद सीधे शहरों और मंडियों तक पहुँच रहे हैं, जिससे परिवहन लागत में लगभग 30% की कमी आई है और उत्पाद की कीमत में स्थिरता आई है।

विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि इस तरह की निजी पहल को सरकारी निगरानी और बजट आवंटन के साथ जोड़ना चाहिए। इससे स्थायित्व सुनिश्चित होगा और सरकाघाट सड़क सुधार जैसी पहलों का व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। राज्य सरकार ने 2025–2026 के लिए ग्रामीण मार्गों में 15% अतिरिक्त निवेश करने की योजना बनाई है, जिसका उद्देश्य संपर्क मार्गों को मजबूत करना और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करना है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि अब स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच आसान हो गई है। गर्भवती महिलाएं और बुजुर्ग अब लंबी और खतरनाक पैदल यात्रा से बच पा रहे हैं। कई लोग कहते हैं कि अगर यह पहल अन्य ग्रामीण इलाकों में भी लागू की जाए तो प्रदेश में सड़क अवरुद्ध होने की समस्या काफी हद तक कम हो सकती है।

सड़कों के खुलने से ग्रामीण रोजगार में भी सुधार हुआ है। मरम्मत कार्य में स्थानीय मजदूरों को रोजगार मिला और कृषि व पर्यटन व्यवसायों से जुड़ी सेवाओं में नई नौकरियाँ उत्पन्न हुई। विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसी पहल सामाजिक और आर्थिक विकास दोनों को बढ़ावा देती है।

सरकाघाट में यह अनुभव दिखाता है कि सरकारी योजनाओं के धीमे क्रियान्वयन के बीच निजी पहल और स्थानीय नेतृत्व से बड़ा बदलाव संभव है। यदि हिमाचल प्रदेश में भविष्य में ऐसी पहलों को सही दिशा और निगरानी के साथ जोड़ दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में संपर्क और आर्थिक विकास में स्थायी सुधार किया जा सकता है।

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