मासूम ने मां को खोया, विवाहित महिला ने की आत्महत्या, पति सहित चार गिरफ्तार
मासूम ने मां को खोया, विवाहित महिला ने की आत्महत्या, पति सहित चार गिरफ्तार

Post by : Shivani Kumari

Nov. 3, 2025 9:25 p.m. 132

कांगड़ा जिले की हालिया घटना हिमाचल के सामाजिक और पारिवारिक परिदृश्य के जटिल पक्षों को उजागर करती है। विवाहिता की संदिग्ध आत्महत्या या हत्या, उसके तीन साल के मासूम बेटे की बेसहारा स्थिति, और पूरे परिवार के गिरफ्त में आने से यह मामला किसी एक घर तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे समाज, प्रशासन और न्यायिक तंत्र के प्रश्नचिन्ह भी उठाता है। प्रताड़ना, पारिवारिक झगड़े और घरेलू हिंसा के कारण उस महिला को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा या उसे मारा गया―इस पर दोनों पक्षों की अपनी-अपनी सफाई और संदेह हैं। पुलिस की त्वरित कार्रवाई से पति, सास, जेठ और जेठानी को गिरफ्तार किया गया, मायका पक्ष के आरोपों को संज्ञान में लिया गया, और शव का पोस्टमार्टम करवाकर न्याय की प्रक्रिया आगे बढ़ायी जा रही है। इसी बीच, मासूम बच्चा मां की ओर बार-बार पुकारता रहा―जिसे अब परिवार व समाज की ओर से विशेष समर्थन की आवश्यकता है।

इस घटना ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया है। कई बार महिलाएं घरेलू हिंसा, मानसिक दबाव, और सामाजिक दंश का सामना कर रही हैं लेकिन मजबूरी में या डर के कारण आवाज नहीं उठा पातीं। घटना के बाद पुलिस की रिपोर्ट, फोरेंसिक जांच और सखी केंद्रों की सहभागिता जरूरी है ताकि सच सामने आ सके और पीड़िता का परिवार न्याय प्राप्त कर सके। आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर ऐसे मामलों में बच्चों का भविष्य भी खतरे में आ जाता है। मनोचिकित्सकों की राय के अनुसार गंभीर तनाव और पारिवारिक विघटन छोटे बच्चों को दीर्घकालिक आघात दे सकता है, जिसकी पूर्ति समाज और प्रशासन को सामूहिक रूप से करनी होगी।

पुलिस प्रशासन ने मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 108 के तहत कार्यवाही की है। मायका पक्ष के अनुसार ससुरालवालों ने विवाहिता को लगातार मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। मायका पक्ष ने अंतिम संस्कार तक के दौरान विरोध जताया और आरोपी पकड़े जाने की मांग की। घटनास्थल से फोरेंसिक साक्ष्य जुटाए गये, तथा समाज के गणमान्य व्यक्तियों और पंचायत प्रधान ने दोनों पक्षों के मध्य समाधान की कोशिश की। लेकिन आरोप-प्रत्यारोप और धक्का-मुक्की से मामला और उलझ गया।

सामाजिक संरचना में आये टूटन के कारण विवाहिता, जो अपनी तीन साल की बच्ची के साथ ऊपर के कमरे में सो रही थी, अगली सुबह फंदे से लटकी मिली। पति का नशे का शौक, झगड़े और असंवेदनशीलता परिवार को बिखेर गई। ऐसे मामलों के पीछे सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक असमानता के कई कारण हो सकते हैं―जैसे दहेज प्रथा, बेरोजगारी, शिक्षा की कमी या अपूर्ण संवाद। घटना के बाद मृतका के मायके पक्ष ने प्रधान पर भी पक्षपात का आरोप लगाया, जिससे मामले की संवेदनशीलता और बढ़ गई।

स्थानीय समाज और प्रशासन को चाहिए कि प्रभावित परिवारों को विधिक सलाह, मनोसामाजिक सहायता और आर्थिक संरक्षण प्रदान करें। महिला मंडल और पंचायतों को प्रीमारिटल व पोस्टमारिटल काउंसलिंग बढ़ानी होगी, ताकि ऐसी घटनाएँ रोकी जा सकें। साथ ही, प्रशासन को बच्चों के लिए खास पुनर्वास योजना बनानी होगी जिसमें शिक्षा, मानसिक परामर्श, और स्वास्थ्य सेवा मिले।

समाज में बढ़ती महिलाओं के प्रति अत्याचार और घरेलू हिंसा की घटनाएँ चिंता का विषय हैं। सरकारी व गैर-सरकारी संगठन जैसे महिला आयोग, सखी केंद्र, पंचायतें और बाल संरक्षण समितियां पीड़ित परिवार के साथ मिलकर दीर्घकालिक समाधान देने के लिए जिम्मेदार हैं। केस की संवेदनशीलता को देखते हुए विधायक, सामाजिक कार्यकर्ता और मनोविशेषज्ञ भी सक्रिय दिखे। परिणामस्वरूप, प्रशासन को महिला सुरक्षा कानूनों की सख्त पालना, त्वरित न्याय, और प्रभावितों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।

इस घटना ने शिक्षा, धार्मिक और सांस्कृतिक धरातल पर भी प्रश्न खड़े किए हैं। पारिवारिक टूटन और महिलाओं की असुरक्षा से बच्चों का समुचित विकास प्रभावित होता है। प्रशासन को चाहिए कि पुलिस, न्यायालय और सामाजिक संगठनों के सहयोग से जागरूकता कैंप, सहायता केंद्र, तथा पुनर्वास योजना को मजबूती दे।

समाज में ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग पर खुलकर संवाद होना चाहिए ताकि पीड़ितों को उचित सहायता और न्याय मिल सके। मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह सही तथ्यों को सामने लाए और लड़कियों-बच्चों की समस्याओं पर संवेदनशीलता से प्रकाश डाले। इस प्रकरण ने प्रमाणित किया कि आधुनिक समाज के ताने-बाने में तनाव, हिंसा और संवादहीनता से जटिल समस्याएं जन्म ले सकती हैं।

समाज के लिए यह घटना एक नया चेतावनी संकेत है: जब तक पारिवारिक संवाद, संवेदनशीलता, न्यायिक पारदर्शिता और प्रशासनिक सजगता नहीं बढ़ेगी, ऐसी घटनाएँ घटती रहेंगी। भविष्य की पीढ़ी के लिए सुरक्षित, शिक्षा-युक्त और समन्वित सामाजिक वातावरण बनाना ही समाज, प्रशासन तथा कानून की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इस घटना से पूरे प्रदेश के नागरिकों, प्रशासन और समाज को आत्मनिरीक्षण कर ठोस तथा सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ाना होगा।

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