हिमाचल प्रदेश की ग्लेशियरें तेजी से पिघल रही हैं: जलवायु परिवर्तन से बढ़ा खतरा
हिमाचल प्रदेश की ग्लेशियरें तेजी से पिघल रही हैं: जलवायु परिवर्तन से बढ़ा खतरा

Post by : Shivani Kumari

Oct. 6, 2025 6:24 p.m. 129

हिमाचल की ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

हिमाचल प्रदेश की ग्लेशियरें तेजी से पिघल रही हैं: जलवायु परिवर्तन से बढ़ा खतरा

हिमाचल प्रदेश, जिसे “देवभूमि” कहा जाता है, अपनी बर्फ से ढकी चोटियों और ग्लेशियरों के लिए प्रसिद्ध है। ये ग्लेशियर न केवल राज्य की नदियों का प्रमुख स्रोत हैं, बल्कि उत्तर भारत के जल संसाधनों की रीढ़ भी हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन के कारण हिमाचल की ग्लेशियरें तेजी से पिघल रही हैं। यह स्थिति न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि स्थानीय समुदायों, कृषि और पर्यटन के लिए भी गंभीर खतरा बन गई है।

हिमाचल प्रदेश की प्रमुख ग्लेशियरें

  • चंद्रा ग्लेशियर (लाहौल-स्पीति)
  • भागा ग्लेशियर
  • पार्वती ग्लेशियर (कुल्लू)
  • ब्यास कुंड ग्लेशियर
  • शिगरी ग्लेशियर (लाहौल)
  • सतलुज बेसिन की छोटी ग्लेशियरें

ग्लेशियरों के पिघलने के प्रमुख कारण

1. बढ़ता वैश्विक तापमान

पिछले 50 वर्षों में हिमाचल प्रदेश का औसत तापमान लगभग 1.5°C बढ़ा है। यह वृद्धि ग्लेशियरों के पिघलने की गति को तेज कर रही है।

2. वर्षा के पैटर्न में बदलाव

पहले जहाँ हिमाचल में अधिकतर वर्षा बर्फ के रूप में होती थी, अब बारिश के रूप में होती है। इससे बर्फ का संचय कम और पिघलने की दर अधिक हो गई है।

3. मानवजनित गतिविधियाँ

सड़क निर्माण, पर्यटन, और औद्योगिक गतिविधियों से कार्बन उत्सर्जन बढ़ा है, जिससे स्थानीय तापमान में वृद्धि हुई है।

4. ब्लैक कार्बन का जमाव

वाहनों और उद्योगों से निकलने वाला ब्लैक कार्बन बर्फ की सतह पर जम जाता है, जिससे सूर्य की किरणें अधिक अवशोषित होती हैं और बर्फ तेजी से पिघलती है।

5. वनों की कटाई

वनों की कटाई से स्थानीय जलवायु असंतुलित होती है और तापमान में वृद्धि होती है, जिससे ग्लेशियरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

ग्लेशियरों के पिघलने के परिणाम

1. जल संसाधनों पर प्रभाव

ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों में जल प्रवाह अस्थिर हो गया है। गर्मियों में बाढ़ और सर्दियों में जल की कमी जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।

2. कृषि पर प्रभाव

हिमाचल की कृषि प्रणाली नदियों और झरनों पर निर्भर है। जल प्रवाह में असंतुलन से सिंचाई प्रभावित हो रही है।

3. भूस्खलन और बाढ़ का खतरा

ग्लेशियरों के पिघलने से ग्लेशियल झीलें बन रही हैं। जब ये झीलें फटती हैं, तो अचानक बाढ़ (GLOF) की घटनाएँ होती हैं।

4. जैव विविधता पर प्रभाव

तापमान बढ़ने से ऊँचाई वाले क्षेत्रों की वनस्पति और जीव-जंतु प्रभावित हो रहे हैं। कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं।

5. पर्यटन पर असर

बर्फ से ढके क्षेत्रों में बर्फबारी कम होने से सर्दियों का पर्यटन प्रभावित हो रहा है। स्कीइंग और स्नो टूरिज्म में गिरावट आई है।

वैज्ञानिक अध्ययन और रिपोर्टें

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल की लगभग 60% ग्लेशियरों का आकार घटा है।
  • वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के अध्ययन में पाया गया कि शिगरी ग्लेशियर हर साल लगभग 20 मीटर पीछे हट रहा है।
  • IPCC की रिपोर्ट के अनुसार, यदि तापमान वृद्धि जारी रही तो 2100 तक हिमालय की 80% ग्लेशियरें गायब हो सकती हैं।

स्थानीय समुदायों पर प्रभाव

ग्लेशियरों के पिघलने से ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट बढ़ रहा है। पारंपरिक जल स्रोत सूख रहे हैं, जिससे लोगों को पलायन करना पड़ रहा है।

संरक्षण और समाधान के उपाय

1. वनों का संरक्षण

वनों की रक्षा से स्थानीय तापमान नियंत्रित रहता है और जलवायु संतुलन बना रहता है।

2. कार्बन उत्सर्जन में कमी

स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाकर और वाहनों के उत्सर्जन को नियंत्रित करके ग्लेशियरों की रक्षा की जा सकती है।

3. ग्लेशियर निगरानी प्रणाली

उपग्रह आधारित निगरानी से ग्लेशियरों के आकार और गति पर नज़र रखी जा सकती है।

4. स्थानीय समुदायों की भागीदारी

स्थानीय लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और संरक्षण उपायों के प्रति जागरूक करना आवश्यक है।

5. सतत पर्यटन

पर्यटन को पर्यावरण-अनुकूल बनाना चाहिए ताकि प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन कम हो।

सरकारी पहल

  • हिमाचल प्रदेश जलवायु परिवर्तन नीति (2012)
  • हिमालयन ग्लेशियर मॉनिटरिंग प्रोग्राम
  • ग्रीन हिमाचल अभियान
  • नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ

अंतरराष्ट्रीय सहयोग

भारत ने पेरिस समझौते के तहत कार्बन उत्सर्जन घटाने और ग्लेशियर संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं। हिमालयन देशों के बीच सहयोग से साझा अनुसंधान और नीति निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है।

भविष्य की चुनौतियाँ

  • ग्लेशियरों के पिघलने की गति को नियंत्रित करना।
  • स्थानीय जल स्रोतों का पुनर्जीवन।
  • जलवायु अनुकूल कृषि प्रणाली विकसित करना।
  • आपदा प्रबंधन और चेतावनी प्रणाली को मजबूत बनाना।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: हिमाचल की कौन सी ग्लेशियरें सबसे तेजी से पिघल रही हैं?

शिगरी, चंद्रा और पार्वती ग्लेशियर सबसे तेजी से पिघल रही हैं।

प्रश्न 2: ग्लेशियरों के पिघलने से कौन-कौन सी नदियाँ प्रभावित हो रही हैं?

ब्यास, सतलुज और चिनाब नदियाँ सीधे प्रभावित हो रही हैं।

प्रश्न 3: क्या ग्लेशियरों का पिघलना रोका जा सकता है?

पूरी तरह नहीं, लेकिन कार्बन उत्सर्जन घटाकर और पर्यावरण संरक्षण से इसकी गति धीमी की जा सकती है।

प्रश्न 4: क्या हिमाचल में ग्लेशियरों की निगरानी की जा रही है?

हाँ, ISRO और हिमाचल सरकार उपग्रह आधारित निगरानी प्रणाली चला रहे हैं।

प्रश्न 5: आम नागरिक क्या योगदान दे सकते हैं?

पेड़ लगाना, प्लास्टिक का उपयोग कम करना, और ऊर्जा की बचत करना जलवायु संरक्षण में मददगार है।

हिमाचल प्रदेश की ग्लेशियरें जलवायु परिवर्तन की सबसे स्पष्ट चेतावनी हैं। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में जल संकट और पर्यावरणीय असंतुलन गंभीर रूप ले सकता है। सामूहिक प्रयास, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी ही हिमाचल की बर्फीली धरोहर को बचा सकती है।

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