विश्व पोलियो दिवस 2025: भारत की पोलियो मुक्त सफलता और सतत प्रयास
विश्व पोलियो दिवस 2025: भारत की पोलियो मुक्त सफलता और सतत प्रयास

Post by : Shivani Kumari

Oct. 24, 2025 11:45 a.m. 147

विश्व पोलियो दिवस 2025: भारत की सफलता, योगदान और नई चुनौतियाँ

विश्व पोलियो दिवस हर वर्ष 24 अक्टूबर को मनाया जाता है — यह दिवस हमें मानव इतिहास के सबसे बड़े जन स्वास्थ्य अभियानों में से एक की याद दिलाता है। भारत, जिसने कभी पोलियो मामलों की भारी संख्या झेली थी, आज इस बीमारी से मुक्त देशों में शामिल है। परंतु यह सफलता केवल सरकारी योजना का परिणाम नहीं, बल्कि लाखों स्वास्थ्यकर्मियों, स्वयंसेवकों और जन समुदायों की सामूहिक जागरूकता का प्रतिबिंब है।

भारत का पोलियो उन्मूलन: ऐतिहासिक यात्रा

1950 से 1990 के दशक तक भारत में पोलियोमाइलाइटिस का प्रकोप भयावह स्तर तक पहुंच गया था। अनेक राज्य, विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार, में हर वर्ष हजारों बच्चे स्थायी रूप से लकवाग्रस्त हो जाते थे। उस दौर में स्वास्थ्य संसाधनों की कमी, स्वच्छता की स्थिति और अशिक्षा ने बीमारी के विस्तार को आसान बना दिया था।

1995 में जब भारत सरकार ने पल्स पोलियो अभियान शुरू किया, तो यह केवल एक कार्यक्रम नहीं था — यह एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया। “दो बूंद ज़िन्दगी की” जैसे भावनात्मक नारे हर गाँव तक पहुँचे। इससे सामाजिक चेतना जगी।

वर्ष-दर-वर्ष प्रगति

  • 1995: पहली बार राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस आयोजित — 8.8 करोड़ बच्चों को ओपीवी दी गई।
  • 2000: मामलों में 50% की कमी।
  • 2005: तीव्र निगरानी तंत्र के कारण केस ट्रैकिंग शुरू हुई।
  • 2011: भारत में अंतिम पोलियो मामला — हावड़ा, पश्चिम बंगाल में।
  • 2014: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो-मुक्त देश घोषित किया।

राजभवन की सोशल मीडिया पोस्ट का महत्व

राजभवन हिमाचल प्रदेश की 24 अक्टूबर 2025 की X (पूर्व ट्विटर) पोस्ट इस उद्देश्य से साझा की गई कि जनता को याद रहे — यह विजय बनाए रखने के लिए निरंतर सतर्कता अनिवार्य है। पोस्ट के संदेश में स्वास्थ्यकर्मियों और स्वयंसेवकों को नमन किया गया। साथ ही “सतत जागरूकता और सामूहिक प्रयासों” की बात कही गई, जो स्वास्थ्य नीति का मूल सिद्धांत है।

यह दिवस हमें याद दिलाता है कि स्वास्थ्य केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि सतत प्रयासों और समुदाय भागीदारी का परिणाम है।

ग्रामीण भारत में पोलियो से लड़ाई: जमीनी कहानियाँ

केस स्टडी 1: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी का उदाहरण

2003 में बाराबंकी जिले के एक छोटे गाँव में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की टीकाकरण दर मात्र 40% थी। स्वास्थ्य विभाग ने स्थानीय शिक्षकों और मौलवियों के सहयोग से जागरूकता बढ़ाई। दरवाज़ा-दरवाज़ा अभियान चलाया गया और माताओं को समझाया गया कि पोलियो का टीका कमजोर बनाने वाला नहीं, मजबूत करने वाला है। अगले साल यह दर 98% पहुँच गई।

केस स्टडी 2: हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी चुनौती

हिमाचल के लाहौल-स्पीति जिले में बर्फीले मौसम में स्वास्थ्य टीमों ने 2010 में -10°C तापमान में मोबाइल क्लिनिक चलाए। 4,000 फीट ऊँचाई पर बसे गांवों तक ‘मिशन हेल्थ’ टीम ने ट्रेक कर टीकाकरण किया। आज हिमाचल में 100% पोलियो टीकाकरण कवरेज है।

केस स्टडी 3: बिहार की प्रवासी आबादी

बिहार में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के कारण टीकाकरण में निरंतरता रखना चुनौतीपूर्ण था। 2011 में ट्रांजिट टीकाकरण बूथ रेलवे स्टेशन, बस अड्डों और सीमाओं पर लगाए गए जहाँ प्रत्येक गुजरते बच्चे को ओपीवी की खुराक दी गई। यह रणनीति बाद में अफ्रीका और दक्षिण एशिया के अन्य देशों ने भी अपनाई।

सामुदायिक भागीदारी और महिलाओं की भूमिका

महिलाओं ने इस अभियान में अग्रणी भूमिका निभाई। आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी सहायिका और स्थानीय स्वयंसेविकाएं न केवल पोलियो ड्रॉप्स देती थीं, बल्कि घर-घर जाकर माताओं को प्रेरित करती थीं। उन्हें ‘स्वास्थ्य दूत’ कहा जाने लगा।

भारत में 27 लाख से अधिक महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता पोलियो ड्राइव का हिस्सा बनीं। उनके प्रशिक्षण के लिए डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ ने ‘Care for the Carers’ पहल शुरू की, ताकि लंबे अभियान के दौरान सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया जा सके।

टीकाकरण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

जोनास साल्क और अल्बर्ट सबिन के शोध ने इस अभियान की नींव रखी। भारत ने दोनों प्रकार के टीकों — आईपीवी और ओपीवी — को अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति में शामिल किया।

  • आईपीवी: इंजेक्शन के द्वारा दी जाने वाली खुराक, जो सुरक्षित मानी जाती है और वीएपीपी जोखिम से मुक्त है।
  • ओपीवी: सस्ती, आसान और बड़े पैमाने पर वितरण योग्य टीका, जो “दो बूंद ज़िन्दगी की” अभियान की आधारशिला है।

भारत में वैज्ञानिक नवाचार

देश में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे ने पोलियो वायरस स्ट्रेन्स की जीनोमिक निगरानी शुरू की। यह निगरानी आज भी सतत चल रही है ताकि किसी संभावित पुनरुत्थान की स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया दी जा सके।

सतत निगरानी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग

भारत की सफलता ने अन्य देशों को प्रेरित किया। 2014 के बाद भारत ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और अफ्रीका के कई देशों में अपने प्रशिक्षकों को भेजा। इसे “Polio-free through partnership” प्रयास कहा गया। भारत का अनुभव बताता है कि केवल चिकित्सा उपाय नहीं, सामाजिक संवाद भी अनिवार्य है।

डब्ल्यूएचओ और जीपीईआई की भूमिका

डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ, सीडीसी और रोटरी द्वारा 1988 में शुरू की गई Global Polio Eradication Initiative (GPEI) ने वित्तीय और तकनीकी सहायता दी। इसके अंतर्गत भारत को 2.8 बिलियन डॉलर से अधिक की सहायता मिली, जिससे लॉजिस्टिक नेटवर्क और सर्द श्रृंखला (cold-chain) प्रणाली मजबूत हुई।

टीका अस्वीकृति और गलत धारणाओं पर विजय

कई जगहों पर अफवाहों ने टीकाकरण की प्रक्रिया को धीमा किया। कुछ समुदायों में अफवाह फैली कि यह टीका बच्चों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है। स्वास्थ्यकर्मियों ने स्थानीय नेताओं, धार्मिक गुरुओं और शिक्षित युवाओं के साथ मिलकर संवाद स्थापित किया। धीरे-धीरे इन भ्रांतियों को दूर किया गया।

डब्ल्यूएचओ की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे सामाजिक हस्तक्षेपों से टीकाकरण दर 20% तक बढ़ी।

डेटा और उपलब्धियां (1995–2025)

वर्ष पोलियो मामले टीकाकरण कवरेज (%)
1995 50,000+ 40%
2000 2650 70%
2010 42 92%
2014 0 (घोषित मुक्त) 99%
2025 0 >99%

भविष्य की दिशा: सतत जागरूकता और टीकाकरण

भले ही भारत में स्वदेशी पोलियो वायरस समाप्त हो गया हो, लेकिन वैश्विक पुनरुत्थान का खतरा बना हुआ है। टीका-व्युत्पन्न पोलियो वायरस (VDPV) के मामले अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों में पाए गए हैं। इसलिए भारत में निगरानी नेटवर्क सक्रिय रखा गया है।

  • हर राज्य में “Rapid Response Teams” गठित हैं।
  • कोविड-19 के अनुभव के बाद एकीकृत निगरानी मॉडल बनाया गया है।
  • नए डिजिटल प्लेटफॉर्म “Vaccine Track India” से लाइव डेटा मॉनिटरिंग।

विश्व पोलियो दिवस केवल अतीत की उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि भविष्य की जिम्मेदारी की याद दिलाता है। भारत का सफर यह सिद्ध करता है कि जब नीति, विज्ञान और समुदाय मिलकर काम करें, तो असंभव भी संभव हो जाता है।

राजभवन की पोस्ट इस भावना को पुनः जागृत करती है — सतत जागरूकता, समुदाय सहयोग और मानवता की सेवा ही वास्तविक स्वस्थ भारत की परिभाषा है।

संदेश: “दो बूंद ज़िन्दगी की” केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक वादा है — हर बच्चे के स्वस्थ भविष्य का।

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