Post by : Shivani Kumari
हिमाचल प्रदेश केवल अपनी हरियाली, बर्फ से ढके पर्वत और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए ही नहीं, बल्कि इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ के राजा-महाराजा न केवल राजनीतिक और सैन्य मामलों में कुशल थे, बल्कि धर्म, संस्कृति और सामाजिक संरचना के संरक्षण में भी अग्रणी भूमिका निभाते थे।
कांगड़ा, कुल्लू, मंडी, नूरपुर और किरात जैसे ऐतिहासिक क्षेत्र इन शासकों की वीरता और बुद्धिमत्ता की कहानियों से भरे हुए हैं। इनकी कहानियाँ आज भी लोकगीतों, पर्वतीय उत्सवों और लोककथाओं में जीवित हैं।
इस लेख में हम उन रोचक और अनकही कहानियों को विस्तार से बताएंगे, जिनमें युद्ध रणनीति, धार्मिक भक्ति, शाही परंपराएँ और अद्भुत लोककथाएँ शामिल हैं।
कांगड़ा के कटोच राजा सुशर्मा चंद्र महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में लड़े। द्रोणाचार्य ने अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाने की योजना बनाई थी, और सुशर्मा चंद्र ने कृष्ण और अर्जुन को दूसरी ओर उलझा कर रखा, जिससे अभिमन्यु अकेला रह गया।
युद्ध के पश्चात सुशर्मा चंद्र मुल्तान से लौटकर कांगड़ा किले का निर्माण करवाया। इस किले में गुप्त मार्ग, जल संचयन प्रणाली और सैन्य रणनीति के अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। किले की वास्तुकला और युद्ध-कला इतिहासकारों के लिए आज भी अध्ययन का विषय हैं।
कहा जाता है कि सुशर्मा चंद्र की रणनीति इतनी कुशल थी कि अर्जुन और कृष्ण भी इसका भान नहीं कर पाए। किले में विशेष सभा और युद्ध परामर्श की परंपरा थी। विजेताओं के सम्मान में भव्य उत्सव आयोजित होते थे।
17वीं शताब्दी में कुल्लू के राजा जगत सिंह को एक ब्राह्मण का श्राप मिला। मुक्ति पाने के लिए उन्होंने अयोध्या से भगवान रघुनाथजी की मूर्ति लाकर कुल्लू में स्थापित की।
मूर्ति लाने की यात्रा कठिन थी—घने जंगल, पहाड़ी मार्ग और खतरनाक रास्ते। किंवदंतियों के अनुसार, राजा की भक्ति और संकल्प शक्ति ने उन्हें हर बाधा पार करने में मदद की।
राजा ने स्वयं को भगवान का पहला सेवक घोषित किया। आज भी कुल्लू में रघुनाथजी को ही असली राजा माना जाता है। मंदिरों और उत्सवों में उनकी पूजा जारी है।
मंडी शहर के घंटाघर के नीचे एक बड़े राजा का अंतिम संस्कार हुआ। किंवदंतियों के अनुसार, राजा के दामाद ने षड्यंत्र कर उन्हें सम्मानजनक तरीके से दफन नहीं होने दिया।
रात में घंटाघर से अजीब आवाजें आती थीं, जिन्हें राजा की आत्मा का क्रोधित होना माना जाता था। दफनाई गई वस्तुएँ आज भी इतिहासकारों के अध्ययन का विषय हैं।
घंटाघर आज भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पर्यटन स्थल है, जहां लोग राजा-महाराजाओं की कहानियाँ सुनने आते हैं।
महाराजा संसार चंद ने लगभग 50 वर्षों तक कांगड़ा पर शासन किया। मुगलों के जाने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता बहाल की, लेकिन बाद में सिख साम्राज्य के प्रभाव में आ गए।
कांगड़ा राजनीतिक रूप से मजबूत और सांस्कृतिक रूप से संपन्न था। किले, दुर्ग और महल आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।
किलों में अद्वितीय सैन्य रणनीतियाँ और चमत्कारी घटनाएँ शामिल थीं। महाराजा संसार चंद की वीरता लोकगीतों में जीवित है।
एक विवाह के दौरान बारातियों को जहर मिला भोजन दिया गया। नूरपुर के वैद्य ने समय रहते इसका पता लगाया और नगाड़ा बजाकर सभी को भोजन से रोका। उन्होंने मंत्र पढ़कर जहर का प्रभाव समाप्त कर दिया।
वैद्य के चमत्कार की कहानियाँ आज भी जीवित हैं। यह घटना हिमाचल की लोकविश्वास और शाही परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण है।
किरात राजा शांबर का उल्लेख ऋग्वेद में है। उनके पास 99 किले थे। उन्होंने आर्य राजा दिवोदास के साथ लंबी लड़ाई लड़ी, जिसमें उनकी मृत्यु हुई।
राजा शांबर की बहादुरी और शक्ति की कहानियाँ आज भी लोकगीतों में गाई जाती हैं। उनके किले, मंदिर और प्रशासनिक स्थल शक्ति का प्रतीक हैं।
राजा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रहते थे।
मंदिर, उत्सव और धार्मिक अनुष्ठानों का संरक्षण।
रघुनाथजी मंदिर, कांगड़ा किला परिसर में प्राचीन पूजा स्थल और नूरपुर वैद्य का चमत्कार।
डॉ. रीटा शर्मा, इतिहासकार: “कांगड़ा और कुल्लू के शासक रणनीति, धर्म और प्रशासन में अद्वितीय थे।”
प्रो. मोहन लाल, लोककथाविद्: “हिमाचल की लोककथाएँ और शाही कहानियाँ वीरता, नैतिकता और धार्मिक समर्पण सिखाती हैं।”
लोकगीत, नृत्य, उत्सव और संस्कृति पर गहरा प्रभाव।
राज्यवासियों में शाही गौरव की भावना।
किले और मंदिर आज भी पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों का आकर्षण।
हिमाचल प्रदेश के राजा-महाराजाओं की कहानियाँ वीरता, नीति, धर्म और संस्कृति का संगम हैं।
कांगड़ा, कुल्लू, मंडी, नूरपुर और किरात के शासक न केवल राजनीतिक नायक थे, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षक भी थे।
ये कहानियाँ इतिहास को जीवित रखती हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
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