Post by : Shivani Kumari
भारतीय क्रिकेट का इतिहास वीरता, रोमांच और अनगिनत विजय गाथाओं से परिपूर्ण है, किंतु इन गाथाओं के मध्य एक कटु सत्य भी छिपा है—यहाँ नेतृत्व सदैव एक अस्थायी मुकुट रहा है। पिछले लगभग पच्चीस वर्षों के कालखंड में, हमने ऐसे अनेक प्रेरणादायक और सफल कप्तानों को देखा है जिन्होंने अपने दल को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दी, किंतु एक न एक मोड़ पर उन्हें भी प्रशासन मंडल की नीतियों, व्यक्तिगत प्रदर्शन के दबाव अथवा आंतरिक राजनीति के समक्ष झुकना पड़ा। यह विडंबना ही है कि जिन खिलाड़ियों ने राष्ट्र को गौरव दिलाया, उन्हें ही सबसे अधिक दबाव झेलते हुए अपने पद से विदाई लेनी पड़ी।
यह आख्यान उन दस महान भारतीय खिलाड़ियों की कहानी प्रस्तुत करता है जिन्होंने सौरव गांगुली के आक्रामक युग से लेकर रोहित शर्मा के आधुनिक काल तक, किसी न किसी कारणवश अपना नेतृत्व पद खोया।
सौरव गांगुली, जिन्हें 'दादा' और 'प्रिंस ऑफ कलकत्ता' के नाम से जाना जाता है, ने भारतीय दल को वह आक्रामकता और आत्मविश्वास दिया जिसकी उसे अत्यंत आवश्यकता थी। उन्होंने विदेशी धरती पर जीतना सिखाया और अनेक युवा खिलाड़ियों को मंच प्रदान किया। किंतु, उनका नेतृत्व काल 2005 में एक बड़े विवाद के साथ समाप्त हुआ। ग्रेग चैपल, जो उस समय भारतीय दल के मुख्य प्रशिक्षक थे, और गांगुली के बीच गंभीर वैचारिक मतभेद उत्पन्न हो गए। यह मतभेद दल के भीतर गुटबाजी और तनाव का कारण बना।
गांगुली के स्वयं के बल्लेबाजी प्रदर्शन में आई अस्थिरता ने भी स्थिति को और जटिल बना दिया। प्रशिक्षक चैपल ने प्रशासन मंडल को एक गोपनीय पत्र लिखकर गांगुली के विरुद्ध कई शिकायतें कीं, जिसके फलस्वरूप गांगुली को अचानक ही नेतृत्व पद से हटा दिया गया। प्रशासन मंडल ने गांगुली के स्थान पर राहुल द्रविड़ को नेतृत्व सौंप दिया। यद्यपि दादा ने बाद में अपने प्रदर्शन से दल में एक खिलाड़ी के रूप में दमदार वापसी की, किंतु उनकी कप्तानी का वह अध्याय 2005 में ही बंद हो गया, जिसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था।
महेंद्र सिंह धोनी, भारत को तीनों प्रमुख विश्व प्रतिस्पर्धाओं का विजेता बनाने वाले अद्वितीय कप्तान। उनकी विदाई को यद्यपि 'स्वैच्छिक निर्णय' बताया गया, किंतु इसके पीछे गहन रणनीतिक और चयन समिति का दबाव था। 2014 में उन्होंने अचानक जाँच प्रारूप (टेस्ट क्रिकेट) का नेतृत्व त्याग दिया। इसके बाद 2017 की शुरुआत में उन्होंने सीमित ओवरों (एक दिवसीय और बीस ओवरों) के प्रारूपों की कप्तानी भी विराट कोहली को सौंप दी।
विराट कोहली का नेतृत्व काल शानदार रहा, विशेषकर जाँच प्रारूप में। उन्होंने दल को विश्व आईसीसी वरीयता में शीर्ष पर पहुँचाया। किंतु, उनके कार्यकाल का समापन विवादों के बीच हुआ। 2021 की बीस ओवरों की विश्व प्रतियोगिता के बाद उन्होंने स्वयं ही इस प्रारूप का नेतृत्व त्याग दिया। लेकिन कुछ ही मासों बाद, भारतीय प्रशासन मंडल ने उनसे एक दिवसीय प्रारूप की कप्तानी भी छीन ली।
अजिंक्य रहाणे ने 2020-21 के ऑस्ट्रेलिया दौरे में विराट कोहली की अनुपस्थिति में भारतीय दल को ऐतिहासिक विजय दिलाई। इसके बावजूद, उन्हें स्थायी कप्तान नहीं बनाया गया और उन्हें कई अवसरों पर भी नेतृत्व नहीं सौंपा गया।
सचिन तेंदुलकर ने 1990 के दशक के उत्तरार्ध और 2000 के आरंभ में दो बार भारतीय दल का नेतृत्व संभाला। हालांकि उनका नेतृत्व काल उतना प्रभावशाली नहीं रहा, जितना उनका व्यक्तिगत प्रदर्शन। लगातार हार और व्यक्तिगत प्रदर्शन के दबाव के कारण उन्होंने स्वयं कप्तानी छोड़ी।
राहुल द्रविड़ ने गांगुली के बाद नेतृत्व संभाला। उनके अधीन दल ने कई द्विपक्षीय श्रृंखलाओं में सफलता अर्जित की, किंतु 2007 की विश्व प्रतियोगिता में असफलता के बाद उन्होंने पद त्याग दिया।
महान गेंदबाज अनिल कुंबले ने 2007 में जाँच प्रारूप में नेतृत्व संभाला। चोट और उत्तराधिकारी के चयन की आवश्यकता के कारण उन्होंने 2008 में कप्तानी छोड़ दी।
वीरेंद्र सहवाग ने अनेक बार भारतीय दल का नेतृत्व किया, किंतु स्थायी कप्तानी नहीं मिली। उनकी नेतृत्व विदाई सीमित अवसरों के कारण हुई।
गौतम गंभीर ने धोनी के विश्राम के दौरान कुछ एक दिवसीय मुकाबलों में नेतृत्व संभाला, लेकिन स्थायी कप्तान नहीं बने।
रोहित शर्मा ने विराट कोहली के बाद तीनों प्रारूपों में नेतृत्व संभाला। हालांकि अभी भी एक दिवसीय और जाँच प्रारूप में कप्तान हैं, बीस ओवरों में हार्दिक पांड्या को नेतृत्व सौंपा गया, जो नेतृत्व चक्रण को दर्शाता है।
अस्थिरता के प्रमुख कारण हैं अत्यधिक जनमत का दबाव, नियंत्रण परिषद की बदलती नीतियाँ, आईसीसी आयोजनों में असफलता पर तत्काल प्रतिक्रिया, और प्रशिक्षक तथा कप्तान के बीच तालमेल की कमी।
ग्रेग चैपल के साथ विवाद और दल के भीतर बिगड़ता वातावरण।
एक ही व्यक्ति, एक ही नेतृत्व की नीति और संवादहीनता।
आधिकारिक रूप से स्वैच्छिक, लेकिन युवा नेतृत्व स्थापित करने के दबाव के कारण।
अधिकतर ने और स्वतंत्रता के साथ प्रदर्शन किया, कुछ जैसे अजिंक्य रहाणे, दल से बाहर हुए।
भारतीय क्रिकेट में नेतृत्व एक निरंतर बहती हुई नदी के समान है। गांगुली ने नींव रखी, धोनी ने महल बनाया, और कोहली ने उसे चमकाया। अंततः सभी को समय की धारा के साथ आगे बढ़ना पड़ा। प्रदर्शन, राजनीति या प्रणाली के कारण इन दस खिलाड़ियों ने नेतृत्व खोकर भी राष्ट्र के हृदय में स्थान सुरक्षित रखा।
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