Post by : Shivani Kumari
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और जापान की नई प्रधानमंत्री साने ताआकिची ने टोक्यो में व्यापार, सुरक्षा और दुर्लभ पृथ्वी खनिजों पर महत्वपूर्ण समझौतों पर बातचीत की। ताआकिची के सत्ता में आने के बाद पहली बार दोनों नेताओं की मुलाकात ऐतिहासिक मानी गई, जिसमें दोनों देशों के राजनयिक और आर्थिक सम्बन्धों को नया आयाम देने का संकल्प लिया गया। जापान ने इस समझौते के तहत अमेरिकी निवेश का एक बड़ा पैकेज दिया है, जिसकी कीमत लगभग 550 अरब डॉलर है। इसमें शिपबिल्डिंग, ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और दुर्लभ पृथ्वी खनिजों प्रथम स्थान पर रखे गए हैं। ताआकिची ने अमेरिकी सोयाबीन, प्राकृतिक गैस और पिकअप ट्रकों की खरीद का भी प्रस्ताव रखा, जिससे द्विपक्षीय व्यापार की गति तेज होने की संभावना है।
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों पर चीन का नियंत्रण अमेरिका और जापान दोनों के लिए बड़ी चुनौती रहा है। इन तत्वों का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों, स्मार्टफ़ोन, डिफेंस सिस्टम, और सेमीकंडक्टर उद्योग में होता है। चीन ने हाल ही में इन पर नए निर्यात नियंत्रण लागू किए हैं, जिसके तहत इन तत्वों वाली वस्तुओं के निर्यात के लिए चीनी अनुमति जरूरी हो गई है। अमेरिका और जापान ने आपूर्ति श्रृंखला की सुरक्षा, अनेक स्रोतों से खनिज उपलब्धता सुनिश्चित करने, और संकट की स्थिति में रैपिड रिस्पांस ग्रुप गठन जैसे उपाय अपनाने पर सहमति व्यक्त की।
ट्रम्प ने इस बैठक में जापान को अमेरिकी सहयोग के सबसे उच्च स्तर पर बताया और सेना के आधुनिकीकरण की ताआकिची की योजना का समर्थन किया। प्रधानमंत्री ताआकिची ने रक्षा बजट को जीडीपी के 2% तक बढ़ाने के लक्ष्य को दोहराया और जापान-अमेरिका गठबंधन को ‘दुनिया का सबसे महान अलायंस’ बताते हुए नई स्वर्णिम युग की शुरुआत का संदेश दिया।
ट्रम्प के एशिया दौरे के दौरान यह दूसरा चरण रहा, जिसमें उन्होंने जापान और दक्षिण कोरिया में कूटनीतिक वार्ताएं कीं। ताआकिची की रणनीति पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के दृष्टिकोण से प्रेरित रही, जिन्होंने ट्रम्प के साथ मज़बूत संबंध बनाए थे। समझौते के तहत दोनों देशों ने औद्योगिक निवेश, तकनीकी सहयोग और दुर्लभ पृथ्वी खनिजों की आपूर्ति पर फोकस रखते हुए वैश्विक बाजार पर चीन के प्रभाव को कम करने की दिशा में ठोस पहल की। व्यापार और निवेश के अलावा सूचना प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन, और इंटेलिजेंस क्षेत्रों में भी सहयोग की रूपरेखा तैयार की गई।
बैठक के बाद ट्रम्प ने जापान के सम्राट से मुलाकात की और अकासाका पैलेस में स्वागत समारोह में भाग लिया। उन्होंने कहा कि जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनना ताआकिची के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है और उनके नेतृत्व में अमेरिका-जापान सम्बन्ध नई ऊँचाई तक पहुंचेंगे। ताआकिची ने ट्रम्प को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने की भी घोषणा की और शिंजो आबे की विरासत पर चर्चा की, जो जापान में राजनयिक सुधारों के प्रेरणास्रोत रहे थे।
दुर्लभ पृथ्वी खनिज समझौते में दोनों देशों ने आर्थिक नीति उपकरणों, संयुक्त निवेश, और खनन-प्रसंस्करण परियोजनाओं के त्वरित परमिटिंग जैसे प्रावधानों पर बल दिया। कम-से-कम 10 जापानी कंपनियों ने अमेरिका में ऊर्जा, एआई, और खनिज परियोजनाओं में निवेश करने की इच्छा जताई है। समझौते का मुख्य उद्देश्य तकनीकी एवं औद्योगिक प्रभुत्व को सुरक्षित रखना और वैश्विक सप्लाई चेन की विश्वसनीयता को बनाए रखना है।
चीन के साथ व्यापार युद्ध की स्थिति में इस समझौते ने अमेरिका को नए विकल्प दिए हैं। जहां चीन ने दुर्लभ तत्वों के निर्यात नियमों को और कठिन बना दिया था, वहीं अमेरिका और जापान के इस कदम से वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा और संतुलन बना रहेगा। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव बढ़ाने के लिए यह पहल महत्वपूर्ण है, जिसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत, और जापान मिलकर क्वाड क्रिटिकल मिनरल्स इनिशिएटिव चला रहे हैं।
बैठक के बाद ट्रम्प और ताआकिची ने व्यापार, निवेश और तकनीकी सहयोग की रूपरेखा साझा की। अमेरिकन और जापानी कंपनियों के स्टॉक्स में उछाल देखा गया और नए निवेश प्रस्तावों के कारण औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार की संभावना बढ़ी। रक्षा, ऊर्जा, और औद्योगिक विनिर्माण में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की आपूर्ति को लेकर अब दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे देशों के साथ भी बातचीत जारी है।
समझौते के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी हैं—जापान में महिलाओं के नेतृत्व को नई पहचान मिली। शिंजो आबे की विधवा अकी आबे से मिलने के बाद ट्रम्प ने जापान-अमेरिका संबंधों की मजबूती पर ज़ोर दिया। सुरक्षा के लिहाज़ से टोक्यो में करीब 18,000 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी।
सारांश के रूप में, टोक्यो की बैठक ने अमेरिका और जापान को दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के वैश्विक बाजार में एक मजबूत साझेदार बना दिया है और चीन के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए नई राहें खोली हैं। व्यापारिक, तकनीकी, और राजनयिक क्षेत्रों में इस साझेदारी की भूमिका आने वाले समय में लगातार बढ़ेगी.
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