सतलुज, व्यास, रावी: हिमाचल की जीवनदायी नदियों का अमूल्य योगदान
सतलुज, व्यास, रावी: हिमाचल की जीवनदायी नदियों का अमूल्य योगदान

Post by : Shivani Kumari

Oct. 17, 2025 4:50 p.m. 140

हिमाचल प्रदेश की गोद में बहने वाली सतलुज, व्यास और रावी नदियाँ न केवल प्राकृतिक सौंदर्य की प्रतीक हैं, बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था, कृषि और ऊर्जा उत्पादन की रीढ़ भी हैं। ये पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तक फैलकर लाखों लोगों को जीवन प्रदान करती हैं। हिमालय की बर्फीली चोटियों से निकलने वाली ये नदियाँ सिंधु नदी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो प्राचीन काल से ही सभ्यताओं को पोषित करती आई हैं।

सतलुज हिमाचल के किन्नौर जिले में रक्षा पर्वत से निकलती है और तिब्बत के मानसरोवर झील के पास शिपकी ला दर्रे से प्रवेश करती है। लगभग 1,450 किलोमीटर लंबी यह नदी भाखड़ा नांगल बांध के माध्यम से पंजाब और हरियाणा को सिंचाई और बिजली प्रदान करती है। भाखड़ा बांध (1,325 मेगावाट क्षमता) देश की प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं में से एक है, जो लाखों घरों को रोशन करता है। सतलुज ने हिमाचल में कोल डैम और नाथपा झाकड़ी जैसी परियोजनाओं से राज्य को ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाया है। इसके अलावा, यह नदी बाढ़ नियंत्रण और मछली पालन में भी योगदान देती है।

ब्यास (व्यास) नदी रोहतांग दर्रे के पास ब्यास कुंड से उद्गमित होती है और मंडी, कांगड़ा व पालमपुर घाटियों को सींचती है। 470 किलोमीटर की इस नदी का संगम ब्यास और सतलुज का पोंग मार्शलैंड (रामसर साइट) जैव विविधता का खजाना है। पोंग बांध (1,020 मेगावाट) जलविद्युत उत्पादन के साथ पक्षी अभयारण्य के रूप में प्रसिद्ध है। व्यास नदी हिमाचल की कृषि को समृद्ध करती है, विशेषकर धान, गेहूँ और फल उत्पादन में। महाभारत में व्यास ऋषि से जुड़ी इस नदी का सांस्कृतिक महत्व भी अपार है, जो कुल्लू-मनाली के पर्यटन को बढ़ावा देती है।

चंबा जिले के रोहतांग पास के पास लाक्षागिरि ग्लेशियर से निकलने वाली रावी नदी 720 किलोमीटर लंबी है और जम्मू-कश्मीर व पंजाब की सीमाओं को छूती है। शाहपुर कंडी बांध और सलाल बांध जैसी परियोजनाएँ इससे बिजली और सिंचाई प्रदान करती हैं। रावी ने ऐतिहासिक रूप से लाहौर तक जलमार्ग दिया, और आज यह पंजाब के मालवा क्षेत्र को पानी पहुँचाती है। हालांकि, भारत-पाकिस्तान जल विवाद (इंदिरा गांधी-भुट्टो समझौता) में यह नदी केंद्र में रही, फिर भी इसका योगदान सिंचाई नहरों (जैसे ऊपरी चेनाब नहर) के माध्यम से लाखों एकड़ भूमि को हरा-भरा करने में है।

ये नदियाँ हिमाचल को जलविद्युत का हब बनाती हैं, जहाँ राज्य 25% से अधिक बिजली इन्हीं से उत्पन्न करता है। सिंधु जल संधि के तहत भारत को इनका 30% हिस्सा मिलता है, जो कृषि जीडीपी में योगदान देता है। पर्यटन, मत्स्य पालन और जैव विविधता के लिए ये अमूल्य हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर पिघलाव, अवैध खनन और प्रदूषण चुनौतियाँ हैं। हिमाचल सरकार की 'नदी संरक्षण योजना' और वन विभाग के प्रयासों से इनकी सफाई और बाढ़ प्रबंधन पर जोर है।

ये नदियाँ हिमाचल की धमनियाँ हैं, जो न केवल जीवन देते हैं बल्कि सतत विकास का प्रतीक हैं। संरक्षण के बिना उनका योगदान अधूरा रहेगा। (स्रोत: भारत सरकार जल शक्ति मंत्रालय, हिमाचल पर्यटन विभाग डेटा)

हिमाचल प्रदेश की गोद में बहने वाली सतलुज, व्यास और रावी नदियाँ न केवल प्राकृतिक सौंदर्य की प्रतीक हैं, बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था, कृषि और ऊर्जा उत्पादन की रीढ़ भी हैं। ये पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तक फैलकर लाखों लोगों को जीवन प्रदान करती हैं। हिमालय की बर्फीली चोटियों से निकलने वाली ये नदियाँ सिंधु नदी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो प्राचीन काल से ही सभ्यताओं को पोषित करती आई हैं।

सतलुज हिमाचल के किन्नौर जिले में रक्षा पर्वत से निकलती है और तिब्बत के मानसरोवर झील के पास शिपकी ला दर्रे से प्रवेश करती है। लगभग 1,450 किलोमीटर लंबी यह नदी भाखड़ा नांगल बांध के माध्यम से पंजाब और हरियाणा को सिंचाई और बिजली प्रदान करती है। भाखड़ा बांध (1,325 मेगावाट क्षमता) देश की प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं में से एक है, जो लाखों घरों को रोशन करता है। सतलुज ने हिमाचल में कोल डैम और नाथपा झाकड़ी जैसी परियोजनाओं से राज्य को ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाया है। इसके अलावा, यह नदी बाढ़ नियंत्रण और मछली पालन में भी योगदान देती है।

ब्यास (व्यास) नदी रोहतांग दर्रे के पास ब्यास कुंड से उद्गमित होती है और मंडी, कांगड़ा व पालमपुर घाटियों को सींचती है। 470 किलोमीटर की इस नदी का संगम ब्यास और सतलुज का पोंग मार्शलैंड (रामसर साइट) जैव विविधता का खजाना है। पोंग बांध (1,020 मेगावाट) जलविद्युत उत्पादन के साथ पक्षी अभयारण्य के रूप में प्रसिद्ध है। व्यास नदी हिमाचल की कृषि को समृद्ध करती है, विशेषकर धान, गेहूँ और फल उत्पादन में। महाभारत में व्यास ऋषि से जुड़ी इस नदी का सांस्कृतिक महत्व भी अपार है, जो कुल्लू-मनाली के पर्यटन को बढ़ावा देती है।

चंबा जिले के रोहतांग पास के पास लाक्षागिरि ग्लेशियर से निकलने वाली रावी नदी 720 किलोमीटर लंबी है और जम्मू-कश्मीर व पंजाब की सीमाओं को छूती है। शाहपुर कंडी बांध और सलाल बांध जैसी परियोजनाएँ इससे बिजली और सिंचाई प्रदान करती हैं। रावी ने ऐतिहासिक रूप से लाहौर तक जलमार्ग दिया, और आज यह पंजाब के मालवा क्षेत्र को पानी पहुँचाती है। हालांकि, भारत-पाकिस्तान जल विवाद (इंदिरा गांधी-भुट्टो समझौता) में यह नदी केंद्र में रही, फिर भी इसका योगदान सिंचाई नहरों (जैसे ऊपरी चेनाब नहर) के माध्यम से लाखों एकड़ भूमि को हरा-भरा करने में है।

ये नदियाँ हिमाचल को जलविद्युत का हब बनाती हैं, जहाँ राज्य 25% से अधिक बिजली इन्हीं से उत्पन्न करता है। सिंधु जल संधि के तहत भारत को इनका 30% हिस्सा मिलता है, जो कृषि जीडीपी में योगदान देता है। पर्यटन, मत्स्य पालन और जैव विविधता के लिए ये अमूल्य हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर पिघलाव, अवैध खनन और प्रदूषण चुनौतियाँ हैं। हिमाचल सरकार की 'नदी संरक्षण योजना' और वन विभाग के प्रयासों से इनकी सफाई और बाढ़ प्रबंधन पर जोर है।

ये नदियाँ हिमाचल की धमनियाँ हैं, जो न केवल जीवन देते हैं बल्कि सतत विकास का प्रतीक हैं। संरक्षण के बिना उनका योगदान अधूरा रहेगा। (स्रोत: भारत सरकार जल शक्ति मंत्रालय, हिमाचल पर्यटन विभाग डेटा)

 

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