गवर्नर शिव प्रताप शुक्ला ने अवैध मल्बा डंपिंग रोकने हेतु सात सदस्यीय उप-समिति गठित की
गवर्नर शिव प्रताप शुक्ला ने अवैध मल्बा डंपिंग रोकने हेतु सात सदस्यीय उप-समिति गठित की

Post by : Shivani Kumari

Oct. 18, 2025 11:44 a.m. 266

शिमला, 18 अक्टूबर 2025, सुबह 9:20 बजे (IST): हिमाचल प्रदेश के गवर्नर शिव प्रताप शुक्ला ने राज्य में अवैध मल्बा (मिट्टी-कचरा) डंपिंग से हो रही व्यापक पारिस्थितिक क्षति को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सात सदस्यीय उप-समिति के गठन को अपनी सहमति प्रदान की है। इस समिति की अध्यक्षता लोक निर्माण विभाग (PWD) के सचिव करेंगे, और इसका प्राथमिक उद्देश्य अवैध मल्बा निपटान से जुड़ी समस्याओं की जांच करना तथा भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना है। यह पहल हिमाचल प्रदेश जैसे हिमालयी राज्य में मानसून के दौरान होने वाली आपदाओं से उत्पन्न होने वाली क्षति को कम करने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है, जहां सड़क, सुरंग और जलविद्युत परियोजनाओं से निकलने वाले मलबे का अनियमित निपटान पर्यावरणीय असंतुलन का प्रमुख कारण बन रहा है।उप-समिति गठन का पृष्ठभूमि और उद्देश्यहिमाचल प्रदेश में हाल के वर्षों में मानसून के दौरान भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं, जिनमें अवैध मल्बा डंपिंग की भूमिका प्रमुख रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, सड़क निर्माण, सुरंग खनन और अन्य विकास परियोजनाओं से उत्पन्न मलबे का अनियमित निपटान नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करता है, जिससे जलभराव, भूस्खलन और अचानक बाढ़ जैसी स्थितियां पैदा होती हैं। गवर्नर शिव प्रताप शुक्ला ने इस मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श के बाद राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उप-समिति अवैध मल्बा निपटान की विस्तृत जांच करेगी, संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करेगी और निवारक तथा उपचारात्मक उपायों की सिफारिशें करेगी।गवर्नर ने इस कदम को पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास से जोड़ते हुए कहा, "हिमाचल की प्राकृतिक सुंदरता और पारिस्थितिकी तंत्र को बचाना हमारी साझा जिम्मेदारी है। अवैध मल्बा डंपिंग न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि मानव जीवन और संपत्ति को भी खतरे में डाल रही है। यह समिति वैज्ञानिक आधार पर समस्याओं का समाधान सुझाएगी, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं को रोका जा सके।"उप-समिति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  1. अवैध मल्बा निपटान की जांच: सड़क, सुरंग और जलविद्युत परियोजनाओं से उत्पन्न मलबे के अनियमित डंपिंग की सीमा का आकलन।
  2. भूस्खलन और बाढ़ के कारणों का विश्लेषण: मल्बा डंपिंग से जुड़े भू-भौतिकीय जोखिमों और जल प्रवाह बाधाओं का अध्ययन।
  3. संवेदनशील क्षेत्रों की मैपिंग: भूस्खलन और बाढ़ प्रभावित इलाकों की पहचान, विशेष रूप से कुल्लू, मंडी और चंबा जैसे जिलों में।
  4. नीतिगत सिफारिशें: मल्बा प्रबंधन के लिए सख्त नियमों, वैज्ञानिक निपटान विधियों और पर्यावरणीय मानकों का प्रस्ताव।
  5. तात्कालिक और दीर्घकालिक उपाय: ड्रेनेज सिस्टम में सुधार, रिटेनिंग वॉल्स का निर्माण और जागरूकता अभियान।
  6. हितधारकों का समन्वय: PWD, NHAI, BRO, पर्यावरण विभाग और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग सुनिश्चित करना।

उप-समिति की संरचनासात सदस्यीय उप-समिति में विभिन्न विभागों और विशेषज्ञता वाले प्रतिनिधि शामिल हैं, ताकि एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया जा सके। अध्यक्ष PWD सचिव होंगे, जो तकनीकी और प्रशासनिक नेतृत्व प्रदान करेंगे। अन्य सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होने की संभावना है (राज्य सरकार द्वारा अंतिम अधिसूचना जारी होने पर स्पष्ट होगा):

  • पर्यावरण विशेषज्ञ: जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक प्रभावों का मूल्यांकन।
  • भू-वैज्ञानिक: भूस्खलन जोखिमों का तकनीकी विश्लेषण।
  • जल संसाधन अधिकारी: बाढ़ प्रबंधन और नदी प्रवाह अध्ययन।
  • आपदा प्रबंधन प्रतिनिधि: राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) से।
  • खनन और वन विभाग अधिकारी: अवैध डंपिंग और वनों की कटाई पर नजर।
  • स्थानीय प्रशासन प्रतिनिधि: जिला स्तर की समस्याओं को समझने के लिए।

समिति को तीन से छह महीने के भीतर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें तात्कालिक कार्रवाई योजना शामिल होगी।हिमाचल में अवैध मल्बा डंपिंग और आपदाओं की समस्याहिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति इसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अतिसंवेदनशील बनाती है। 2025 के मानसून में कुल 192 मौतें हुईं, जिनमें से 106 भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने से जुड़ी थीं। कुल्लू-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर भूस्खलन से सड़कें अवरुद्ध हो गईं, जबकि मंडी और चंबा में 404 सड़कें बंद रहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि अवैध मल्बा डंपिंग नदियों के प्राकृतिक चैनलों को अवरुद्ध कर रही है, जिससे जलभराव और अचानक बाढ़ आ रही है।प्रमुख कारण:

  1. अनियमित मल्बा निपटान: सड़क और सुरंग परियोजनाओं से निकलने वाले मलबे को नदियों या ढलानों में फेंकना।
  2. अवैध खनन: नदी तटों पर रेत-बजरी खनन से मिट्टी का कटाव।
  3. वनों की कटाई: ढलानों की स्थिरता कम होना।
  4. जलवायु परिवर्तन: अनियमित वर्षा और ग्लेशियर पिघलना।

2023 की आपदाओं के बाद केंद्र सरकार ने ₹2,006.40 करोड़ की सहायता दी, लेकिन स्थानीय स्तर पर मल्बा प्रबंधन की कमी बनी हुई है। गवर्नर शुक्ला ने अगस्त 2025 में मंडी-कुल्लू के लिए राहत सामग्री रवाना की और अक्टूबर में मनाली का दौरा कर क्षति का आकलन किया।कार्ययोजना और अपेक्षित प्रभावउप-समिति की कार्ययोजना चरणबद्ध है:

  1. सर्वेक्षण और डेटा संग्रह: प्रभावित क्षेत्रों का मैपिंग और डेटा विश्लेषण।
  2. परामर्श: पर्यावरणविदों, NGOs और स्थानीय निवासियों से चर्चा।
  3. समाधान प्रस्ताव: बायो-इंजीनियरिंग तकनीकें, जैसे वनरोपण और ड्रेनेज सुधार।
  4. रिपोर्ट और कार्यान्वयन: सिफारिशों पर आधारित नीतियां।

इससे न केवल आपदाओं में कमी आएगी, बल्कि पर्यटन और अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा। स्थानीय निवासी और पर्यावरण संगठनों ने स्वागत किया है, लेकिन संसाधनों की कमी और कार्यान्वयन चुनौतियां बनी रहेंगी।निष्कर्षगवर्नर शिव प्रताप शुक्ला का यह निर्णय हिमाचल के पर्यावरण संरक्षण में मील का पत्थर साबित हो सकता है। अवैध मल्बा डंपिंग पर अंकुश लगाकर राज्य भविष्य की आपदाओं से सुरक्षित हो सकेगा।

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