हिमाचल के राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य
हिमाचल के राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य

Post by : Shivani Kumari

Oct. 13, 2025 8:58 p.m. 144

हिमाचल प्रदेश, जिसे “देवभूमि” कहा जाता है, केवल अपने हिमालयी सौंदर्य और तीर्थ स्थलों के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी विशिष्ट कृषि परंपरा के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ की खेती केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि लोगों की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा है।

हिमाचल में खेती करना आसान नहीं है। ऊबड़-खाबड़ भूगोल, जलवायु की अनिश्चितता और सीमित भूमि संसाधन किसानों के लिए बड़ी चुनौती हैं। फिर भी, यहाँ के मेहनती किसान प्रकृति के साथ तालमेल बनाए रखते हुए खेती करते हैं, यही हिमाचल की कृषि की सबसे बड़ी खासियत है।

हिमाचल की कृषि की प्रमुख विशेषताएँ

  1. सीढ़ीदार खेती
    पहाड़ों पर खेत सपाट नहीं होते, इसलिए किसान ढलानों को सीढ़ीनुमा आकार में काटकर खेती करते हैं।
    यह तकनीक मिट्टी के कटाव को रोकती है और पानी के संरक्षण में मदद करती है।

  2. सीमित भूमि, लेकिन विविध फसलें
    छोटे खेतों में किसान मिश्रित खेती करते हैं, जैसे एक ही खेत में दालें, अनाज और सब्जियाँ।
    इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और फसल जोखिम कम होता है।

  3. जल स्रोतों पर निर्भरता
    सिंचाई के लिए नदियाँ, नाले, झरने और वर्षा प्रमुख स्रोत हैं।
    अधिकतर खेती वर्षा आधारित (Rainfed) होती है, इसलिए फसलें मौसम पर निर्भर रहती हैं।

हिमाचल में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें

निचले क्षेत्र (मैदानी और कम ऊँचाई वाले इलाके)

  • गेहूँ

  • धान (चावल)

  • मक्का (भुट्टा)

  • सरसों, तिलहन फसलें

मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्र

  • आलू, मटर, राजमा

  • सब्जियाँ – गोभी, गाजर, टमाटर, प्याज़ आदि

ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र

  • जौ, ओट्स, मडुआ

  • फलदार पेड़ – सेब, नाशपाती, चेरी, प्लम

बागवानी: हिमाचल की पहचान

हिमाचल की पहचान अब केवल अनाज से नहीं, बल्कि फल उत्पादन (बागवानी) से भी जुड़ गई है।
1950 के दशक में सेब की बागवानी ने शिमला, किन्नौर और कुल्लू के किसानों की ज़िंदगी बदल दी।
आज हिमाचल, भारत के प्रमुख सेब उत्पादक राज्यों में शामिल है।

हिमाचल में उगाए जाने वाले प्रमुख फल:

  • सेब

  • नाशपाती, चेरी, खुबानी, कीवी, प्लम

बागवानी ने न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत की है, बल्कि यह हिमाचल की कृषि-परंपरा का प्रतीक बन चुकी है।

हिमाचल की खेती में आधुनिक बदलाव

पहले जहाँ खेती पारंपरिक तरीकों (हल-बैल) से होती थी, वहीं अब किसान नई तकनीकों को अपना रहे हैं:

  • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली

  • जैविक खेती

  • ग्रीनहाउस / पॉलीहाउस खेती

  • सौर ऊर्जा से चलने वाले सिंचाई पंप

  • कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा वैज्ञानिक प्रशिक्षण

इन बदलावों से खेती अधिक सतत और लाभकारी बन रही है।

पर्यावरण के अनुकूल खेती

हिमाचल के किसान प्रकृति के प्रति सजग रहते हैं। यहाँ की खेती पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देती है:

  • रासायनिक खाद का सीमित प्रयोग

  • प्राकृतिक खाद, गोबर और जैविक विधियाँ

  • मिट्टी का संरक्षण, जल स्रोतों की सुरक्षा

  • वन कटाव पर नियंत्रण

यह टिकाऊ खेती किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी है।

पहाड़ी किसानों की चुनौतियाँ

हालांकि हिमाचल की कृषि परंपरा मजबूत है, फिर भी किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है:

  1. कठिन भूगोल
    पहाड़ी क्षेत्रों में खेत छोटे और ढलानदार होते हैं, जिससे आधुनिक कृषि मशीनों का उपयोग मुश्किल है और उत्पादन क्षमता सीमित रहती है।

  2. जलवायु संकट
    बेमौसम बारिश, बर्फबारी, सूखा और ओलावृष्टि जैसी घटनाएँ सामान्य हो रही हैं, जिससे फसलें प्रभावित होती हैं और आय अस्थिर होती है।

  3. बाज़ार तक पहुँच की कमी
    कई गाँवों से मुख्य बाजारों तक पहुँचने के लिए सड़कें और परिवहन सीमित हैं, जिससे किसानों की उपज की बिक्री प्रभावित होती है।

  4. युवा पीढ़ी का खेती से मोहभंग
    नई पीढ़ी खेती को कठिन और कम लाभकारी मानती है। युवा रोजगार और शहरी जीवन की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे खेती की निरंतरता पर असर पड़ता है।

  5. बागवानी में कीट और रोग
    फल उत्पादन के साथ कीट और बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है। उचित सलाह और दवा न मिलने पर किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

सरकार द्वारा इन समस्याओं के समाधान के लिए सब्सिडी, प्रशिक्षण, और फसल बीमा योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

हिमाचल प्रदेश की कृषि केवल खाद्य उत्पादन का साधन नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा और जीवनदृष्टि है। यहाँ के किसान कठिन परिस्थितियों में भी प्राकृतिक संतुलन, मेहनत और आस्था के साथ काम करते हैं।

हर खेत एक कहानी कहता है और हर सीढ़ी संघर्ष की मिसाल प्रस्तुत करती है।
परंपरा और आधुनिक तकनीक का यह संगम हिमाचल की खेती को और समृद्ध और भविष्यगामी बना रहा है।

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