Post by : Shivani Kumari
हाल ही में देहरादून में आयोजित जलवायु विशेषज्ञ बैठक में पश्चिमी हिमालय की ग्लेशियरों की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई गई। आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र के ग्लेशियरों में लगभग 70% कमी हुई है। यह घटना केवल पर्यावरण संकट नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव कृषि और जलवायु परिवर्तन पर भी गहरा पड़ रहा है। किसान, स्थानीय समुदाय और राज्य की आर्थिक स्थिरता इस परिवर्तन की चपेट में हैं।
पश्चिमी हिमालय भारत के जल संसाधनों का मुख्य स्रोत है। ग्लेशियरों की कमी न केवल नदियों के प्रवाह और जल उपलब्धता को प्रभावित करती है, बल्कि हिमाचल और उत्तराखंड कृषि और स्थानीय जीविका पर भी गंभीर असर डालती है। जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ पिघल रही है, मानसून पैटर्न बदल रहे हैं और कृषि उत्पादन अस्थिर हो रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि:
यह बदलाव सीधे पश्चिमी हिमालय जलवायु को प्रभावित करता है और कृषि और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में नई चुनौतियाँ ला रहा है।
ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से हिमाचल और उत्तराखंड कृषि पर प्रत्यक्ष असर पड़ा है। इसके प्रमुख प्रभाव हैं:
किसानों ने कहा कि वे नई सिंचाई तकनीक और मौसम पूर्वानुमान आधारित कृषि उपाय अपनाने के लिए तैयार हैं, ताकि कृषि और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना किया जा सके।
बैठक में विशेषज्ञों ने विभिन्न दृष्टिकोण पेश किए:
जलवायु वैज्ञानिक: "ग्लेशियर कमी हिमालय को गंभीर खतरे में डाल रही है। यदि हमने तुरंत उपाय नहीं किए, तो यह न केवल जल संकट बल्कि कृषि संकट भी पैदा करेगा।"
कृषि विशेषज्ञ: "स्थायी सिंचाई, ड्रिप तकनीक और जल संरक्षण उपाय हिमाचल और उत्तराखंड कृषि के लिए अनिवार्य हैं।"
स्थानीय पर्यावरणविद: "वनों और जल स्रोतों का संरक्षण ग्लेशियर सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। सामुदायिक भागीदारी इस योजना की सफलता की कुंजी है।"
हिमालयन एक्शन प्लान का उद्देश्य ग्लेशियर संरक्षण, जलवायु अनुकूलन और कृषि स्थिरता सुनिश्चित करना है। इसके प्रमुख बिंदु:
ग्लेशियरों में कमी के कारण सामाजिक और आर्थिक स्तर पर कई प्रभाव दिख रहे हैं:
विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि दीर्घकालिक समाधान के लिए:
पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियर कमी हिमालय और पश्चिमी हिमालय जलवायु परिवर्तन गंभीर चेतावनी हैं। इसका प्रभाव कृषि और जलवायु परिवर्तन और हिमाचल और उत्तराखंड कृषि पर प्रत्यक्ष रूप से दिख रहा है। हिमालयन एक्शन प्लान के माध्यम से ग्लेशियर संरक्षण, कृषि स्थिरता और जलवायु अनुकूलन सुनिश्चित किया जा सकता है। यह योजना हिमालय की पारिस्थितिकी, किसानों की आय और क्षेत्रीय विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम है।
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