पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियर कमी: कृषि और जलवायु पर गंभीर प्रभाव
पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियर कमी: कृषि और जलवायु पर गंभीर प्रभाव

Post by : Shivani Kumari

Oct. 16, 2025 8:53 p.m. 150

कृषि और जलवायु परिवर्तन: पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियरों में 70% कमी पर विशेषज्ञों की चिंता

हाल ही में देहरादून में आयोजित जलवायु विशेषज्ञ बैठक में पश्चिमी हिमालय की ग्लेशियरों की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई गई। आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र के ग्लेशियरों में लगभग 70% कमी हुई है। यह घटना केवल पर्यावरण संकट नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव कृषि और जलवायु परिवर्तन पर भी गहरा पड़ रहा है। किसान, स्थानीय समुदाय और राज्य की आर्थिक स्थिरता इस परिवर्तन की चपेट में हैं।

1. परिचय और महत्व

पश्चिमी हिमालय भारत के जल संसाधनों का मुख्य स्रोत है। ग्लेशियरों की कमी न केवल नदियों के प्रवाह और जल उपलब्धता को प्रभावित करती है, बल्कि हिमाचल और उत्तराखंड कृषि और स्थानीय जीविका पर भी गंभीर असर डालती है। जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ पिघल रही है, मानसून पैटर्न बदल रहे हैं और कृषि उत्पादन अस्थिर हो रहा है।

2. पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियरों की स्थिति

विशेषज्ञों का कहना है कि:

  • पिछले 50 वर्षों में ग्लेशियरों का क्षेत्रफल लगभग 70% घट चुका है।
  • तापमान में वृद्धि और बदलते मौसम ने ग्लेशियरों के पिघलने की दर तेज कर दी है।
  • इससे नदियों के प्रवाह और जल वितरण में असंतुलन उत्पन्न हुआ है।
  • हिमालय की पारिस्थितिकी और जैव विविधता प्रभावित हो रही है।

यह बदलाव सीधे पश्चिमी हिमालय जलवायु को प्रभावित करता है और कृषि और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में नई चुनौतियाँ ला रहा है।

3. कृषि और स्थानीय जीवन पर प्रभाव

ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से हिमाचल और उत्तराखंड कृषि पर प्रत्यक्ष असर पड़ा है। इसके प्रमुख प्रभाव हैं:

  • सिंचाई संकट: जल स्रोतों में कमी और अनियमित प्रवाह से किसानों को सिंचाई में कठिनाई हो रही है।
  • फसल पैदावार में गिरावट: आलू, गेहूं, धान और अन्य फसलें कम पानी और बढ़ती गर्मी के कारण प्रभावित हो रही हैं।
  • मौसम अस्थिरता: मानसून और वर्षा का समय बदल रहा है, जिससे किसान लगातार नुकसान झेल रहे हैं।
  • स्थानीय जीवन प्रभावित: जल संकट, रोजगार और ग्रामीण जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव।

किसानों ने कहा कि वे नई सिंचाई तकनीक और मौसम पूर्वानुमान आधारित कृषि उपाय अपनाने के लिए तैयार हैं, ताकि कृषि और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना किया जा सके।

4. विशेषज्ञों की राय और इंटरव्यू

बैठक में विशेषज्ञों ने विभिन्न दृष्टिकोण पेश किए:

जलवायु वैज्ञानिक: "ग्लेशियर कमी हिमालय को गंभीर खतरे में डाल रही है। यदि हमने तुरंत उपाय नहीं किए, तो यह न केवल जल संकट बल्कि कृषि संकट भी पैदा करेगा।"

कृषि विशेषज्ञ: "स्थायी सिंचाई, ड्रिप तकनीक और जल संरक्षण उपाय हिमाचल और उत्तराखंड कृषि के लिए अनिवार्य हैं।"

स्थानीय पर्यावरणविद: "वनों और जल स्रोतों का संरक्षण ग्लेशियर सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। सामुदायिक भागीदारी इस योजना की सफलता की कुंजी है।"

5. एकीकृत हिमालयन एक्शन प्लान (IHAP)

हिमालयन एक्शन प्लान का उद्देश्य ग्लेशियर संरक्षण, जलवायु अनुकूलन और कृषि स्थिरता सुनिश्चित करना है। इसके प्रमुख बिंदु:

  • ग्लेशियर संरक्षण: हिमालयी बर्फ और हिम जल भंडार को बनाए रखना और पिघलने की दर नियंत्रित करना।
  • सिंचाई और जल प्रबंधन: जल संग्रहण, नदियों के प्रवाह का संतुलन और सतत जल उपयोग।
  • कृषि नवाचार: टिकाऊ फसल प्रणाली, ड्रिप सिंचाई और किसानों के लिए प्रशिक्षण।
  • वन और जैव विविधता संरक्षण: वन क्षेत्र और जैव विविधता की सुरक्षा से ग्लेशियरों को प्राकृतिक संरक्षण मिलेगा।
  • सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय लोग और किसान योजना में सक्रिय रूप से शामिल हों।

6. सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

ग्लेशियरों में कमी के कारण सामाजिक और आर्थिक स्तर पर कई प्रभाव दिख रहे हैं:

  • कृषि आय में कमी और उत्पादन लागत में वृद्धि।
  • जल संकट से ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनस्तर प्रभावित।
  • स्थानीय रोजगार और पर्यटन उद्योग पर प्रतिकूल असर।
  • भविष्य में युवा पीढ़ी के लिए आर्थिक स्थिरता चुनौतीपूर्ण हो सकती है।

7. भविष्य की संभावनाएँ और समाधान

विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि दीर्घकालिक समाधान के लिए:

  • जल संरक्षण और बर्फ/हिम जल भंडारण बढ़ाना।
  • ड्रिप सिंचाई, वर्षा जल संचयन और मौसम पूर्वानुमान तकनीक अपनाना।
  • स्थानीय समुदाय और किसानों को जलवायु विशेषज्ञ बैठक के सुझावों के अनुसार शामिल करना।
  • केंद्र और राज्य सरकार द्वारा सतत जलवायु नीतियों का निर्माण और पालन।
  • कृषि में नवाचार और वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देना।

पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियर कमी हिमालय और पश्चिमी हिमालय जलवायु परिवर्तन गंभीर चेतावनी हैं। इसका प्रभाव कृषि और जलवायु परिवर्तन और हिमाचल और उत्तराखंड कृषि पर प्रत्यक्ष रूप से दिख रहा है। हिमालयन एक्शन प्लान के माध्यम से ग्लेशियर संरक्षण, कृषि स्थिरता और जलवायु अनुकूलन सुनिश्चित किया जा सकता है। यह योजना हिमालय की पारिस्थितिकी, किसानों की आय और क्षेत्रीय विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम है।

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