Post by : Shivani Kumari
हिमाचल प्रदेश की पहचान उसके बर्फीले पहाड़ों, गहरी घाटियों और उनमें बहने वाली सदानीरा नदियों से है। ये जलधाराएँ (विशेषकर सतलुज, व्यास, और रावी) मात्र भौगोलिक विशेषताएँ नहीं हैं; वे यहाँ की संस्कृति, कृषि और राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इन नदियों ने हिमाचल को हाइड्रो पावर का गढ़ बनाकर एक नई पहचान दी है। यह लेख इन प्रमुख नदियों के भौगोलिक उद्गम, उनके सांस्कृतिक महत्व और पर्यावरणीय चुनौतियों के साथ-साथ उनके विशाल आर्थिक महत्व पर एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
हिमाचल की नदियाँ मुख्य रूप से विशाल सिंधु नदी प्रणाली का हिस्सा हैं, जो हिमालय के जटिल भू-भाग से होकर गुजरती हैं।
सतलुज नदी, जो तिब्बत में मानसरोवर के निकट राकस ताल से निकलती है, शिपकी दर्रे से भारत में प्रवेश करती है। यह किन्नौर, शिमला, सोलन, और बिलासपुर जैसे जिलों से होकर बहती है। हिमाचल में इसकी यात्रा लगभग 320 किलोमीटर की है।
व्यास नदी पीर पंजाल श्रेणी के रोहतांग दर्रे के पास **व्यास कुंड** से निकलती है। यह कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा घाटी से होकर गुजरती है, जहाँ यह उपजाऊ जलोढ़ मैदान (Alluvial Plains) बनाती है।
रावी नदी कांगड़ा जिले में बड़ा भंगाल क्षेत्र से निकलती है और मुख्य रूप से चम्बा जिले से होकर गुजरती है। इसका प्राचीन नाम 'पुरुष्णी' है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है।
चिनाब: लाहौल-स्पीति में चंद्रा और भागा नदियों के संगम (तांदी) से बनती है। यह आयतन में सबसे बड़ी नदी है, जिसका जलविद्युत क्षमता अभी भी बड़े पैमाने पर अप्रयुक्त है। यमुना: यह नदी सिरमौर जिले के पूर्वी छोर को छूती है, जिसकी सहायक नदियाँ गिरी और टॉन्स पेयजल और सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण हैं, खासकर शुष्क क्षेत्रों में।
हिमाचल की नदियाँ राज्य की अर्थव्यवस्था का इंजन हैं। हाइड्रो पावर से प्राप्त राजस्व राज्य के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है। हालांकि, सतलुज और व्यास के जल पर निर्भरता के कारण पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के साथ अंतर्राज्यीय जल बंटवारे के मुद्दे भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बने हुए हैं। इन नदियों का जल **राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा** में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हिमाचल की नदियाँ और उनका पारिस्थितिकी तंत्र गंभीर खतरों का सामना कर रहा है:
प्रसिद्ध जल संसाधन विशेषज्ञ डॉ. [नाम] के अनुसार, "हिमालयी नदियों को केवल बिजली उत्पादन के स्रोत के रूप में नहीं देखना चाहिए। उनकी पारिस्थितिक भूमिका सर्वोपरि है। राज्य को अब 'टिकाऊ जलविद्युत परियोजनाएँ' (Sustainable Hydropower Projects) अपनाने की ओर बढ़ना होगा, जहाँ पर्यावरणीय प्रवाह को प्राथमिकता दी जाए। यह दीर्घकालिक जल सुरक्षा की कुंजी है।"
पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों का मानना है कि रिवर बेसिन मैनेजमेंट (River Basin Management) पर ध्यान केंद्रित करना और स्थानीय समुदायों को **संरक्षण** प्रयासों में शामिल करना समय की मांग है।
हिमाचल की नदियाँ — सतलुज, व्यास, और रावी — न केवल हिमाचल के भूगोल को परिभाषित करती हैं, बल्कि इसकी **संस्कृति** और **अर्थव्यवस्था** को भी शक्ति देती हैं। हाइड्रो पावर के लाभ स्पष्ट हैं, लेकिन इसके साथ ही **पर्यावरणीय चुनौतियों** और **ग्लेशियरों के पिघलने** जैसे खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इन **जीवनरेखाओं** का **संरक्षण** और प्रदूषण नियंत्रण नीतियाँ ही सुनिश्चित करेंगी कि उनका **जीवनदायी योगदान** आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बना रहे। यह हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह इस अमूल्य प्राकृतिक संपदा की रक्षा करे।
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