हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक लोक नृत्य: नाटी और पहाड़ों की जीवंत लोक परंपरा
हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक लोक नृत्य: नाटी और पहाड़ों की जीवंत लोक परंपरा

Post by : Shivani Kumari

Oct. 24, 2025 11:30 a.m. 169

हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक लोक नृत्य: संस्कृति, संगीत और विरासत

हिमाचल प्रदेश, जिसे देवभूमि कहा जाता है, न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं के लिए भी जाना जाता है। राज्य की धार्मिक, सामाजिक और लोक परंपराएँ लोक नृत्यों में परिलक्षित होती हैं। यहां हर पर्व और त्योहार का उत्सव लोक नृत्यों के माध्यम से मनाया जाता है। नाटी (Nati), कायांग माला (Kayang Mala), छाम (Chham), डांगी (Dangi) और राक्षस नृत्य जैसी प्रस्तुतियाँ हिमाचली जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।

इन नृत्यों के माध्यम से न केवल मनोरंजन होता है बल्कि यह लोगों की धार्मिक आस्था, सामाजिक एकता और दैनिक जीवन की कथाओं को भी व्यक्त करते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: लोक नृत्यों की उत्पत्ति

हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक विविधता ने यहाँ की संस्कृति को अनोखा रूप दिया है। यहाँ के पहाड़ी जनजातियों और ग्रामीण समुदायों ने अपने रहन-सहन और श्रम के बीच आनंद और श्रद्धा व्यक्त करने के साधन के रूप में लोक नृत्यों का विकास किया।

प्राचीन काल में ये नृत्य देवी-देवताओं की आराधना, फसल पकने की खुशी या युद्ध में विजय के उल्लास को अभिव्यक्त करने हेतु किए जाते थे। हर जिले और क्षेत्र ने अपनी विशिष्ट नृत्य शैली विकसित की — शिमला में महासूवी नाटी, कुल्लू में कुल्लवी नटी, सिरमौर में सिरमौरी नटी और मंडी में डांगी

संस्कृति और परंपराओं में योगदान

हिमाचली लोक नृत्य गांव-समाज की सामूहिक एकता का प्रतीक हैं। विवाह, जन्मोत्सव, फसल कटाई और देव आराधना – हर अवसर पर लोक नृत्य एक आवश्यक परंपरा है।

हिमाचल प्रदेश के प्रमुख लोक नृत्य

नाटी (Nati) — हिमाचल की शान

नाटी हिमाचल का सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है और इसे दुनिया का सबसे बड़ा लोक नृत्य भी माना गया है। 2015 में कुल्लू जिले में 9,892 लोगों ने एक साथ नाटी कर यह रिकॉर्ड बनाया। नाटी में पुरुष और महिलाएँ हाथ में हाथ डालकर वृत्ताकार समूह में नाचते हैं।

इस नृत्य में प्रयोग होने वाले वाद्ययंत्र हैं — ढोल, दमाऊ, करनाल, शहनाई और नरसिंघा

नाटी के क्षेत्रीय प्रकार

  • कुल्लवी नाटी — कुल्लू जिले में
  • सिरमौरी नाटी — सिरमौर क्षेत्र में
  • किन्नौरी नाटी — किन्नौर में
  • महासूवी नाटी — शिमला के आसपास
  • जौनसरी नाटी — जौनसार-बावर में

नाटी का महत्व

नाटी केवल नृत्य नहीं बल्कि यह हिमाचल का सामाजिक ताना-बाना है। यह एक ऐसी परंपरा है जिसमें सामूहिकता, आस्था और संगीत का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है।

कायांग माला — एकता की अभिव्यक्ति

कायांग माला नृत्य किन्नौर, लाहुल और स्पीति के पर्वतीय क्षेत्रों में प्रसिद्ध है। ‘कायंग’ शब्द का अर्थ होता है ‘एक साथ चलना’। यह नृत्य मानव श्रृंखला बनाकर किया जाता है, जिसमें प्रतिभागी एक-दूसरे के कंधे में हाथ डालकर तालबद्ध गति में झूमते हैं। यह नृत्य बौद्ध संस्कृति के अहिंसा और एकत्व संदेश का प्रतीक है।

छानक छाम — आध्यात्मिक मुखौटा नृत्य

लाहुल-स्पीति के मठों में आयोजित होने वाला छानक छाम बौद्ध साधुओं द्वारा किया जाने वाला धार्मिक नृत्य है। लामा साधु रंगीन वस्त्र और मुखौटों में यह नृत्य करते हैं। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय और बुराई पर अच्छाई के संदेश को प्रदर्शित करता है।

डांगी — मंडी का प्रमुख नृत्य

मंडी और बिलासपुर क्षेत्र का पारंपरिक नृत्य डांगी कृषि जीवन से जुड़ा हुआ है। यह आमतौर पर महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो लकड़ी की छड़ियों से ताल बजाती हैं। इसकी लय और ऊर्जा खेतों और पर्वों की खुशहाली को दर्शाती है।

राक्षस नृत्य — बुराई पर विजय का प्रतीक

राक्षस नृत्य लाहुल-स्पीति और किन्नौर क्षेत्र में किया जाता है। इसमें कलाकार राक्षसों के रूप में अभिनय करते हैं और देव शक्तियों की विजय को उत्सव के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

जाची नृत्य — आदिवासी एकता का प्रतीक

जाची नृत्य कुल्लू, मंडी और शिमला जिलों में किया जाता है। यह नृत्य जनजातीय संस्कृति की गहराइयों को स्पर्श करता है और सामाजिक एकता का संदेश देता है। विवाह और धार्मिक अवसरों पर इसका विशेष प्रदर्शन होता है।

बिज्जू नृत्य — सामाजिक समरसता का प्रतीक

‘बिज्जू’ नृत्य विशेष अवसरों पर किया जाता है, जैसे विवाह, त्यौहार और मेले। यह समाज में खुशहाली, सौहार्द और समृद्धि का संदेश देने वाला नृत्य है।

लोक नृत्यों में वाद्य यंत्र और पोशाक

हिमाचली लोक नृत्यों में वाद्य यंत्रों की ध्वनि जीवंतता का आधार होती है। ढोल, दमाऊ, नगाड़ा, करनाल, शहनाई और नरसिंघा मुख्य वाद्य हैं।

लोक नृत्य की वेशभूषा

  • पुरुष: चोला, दास्तार (पगड़ी), ऊनी कमरबंध
  • महिलाएं: घाघरा, पट्टू, चूड़ीदार, आभूषण

हिमाचली लोक नृत्य और समाज

यह नृत्य हिमाचली समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग हैं। विवाह समारोहों, त्योहारों, और देवमेलों में इनका विशेष स्थान है। लोक नृत्यों के माध्यम से लोग अपनी परंपराओं को जीवित रखते हैं।

पर्यटन और आर्थिक प्रभाव

2025 में हिमाचल प्रदेश के लोक नृत्यों ने राज्य के सांस्कृतिक पर्यटन को नए मुकाम पर पहुँचाया। कुल्लू दशहरा, मेला चंबा और मंडी शिवरात्रि में लाखों पर्यटक इन नृत्यों को देखने आते हैं। राज्य पर्यटन विभाग के अनुसार, इन आयोजनों से लगभग ₹300 करोड़ का राजस्व अर्जित हुआ।

विशेषज्ञ विचार

“हिमाचल की हर घाटी का अपना नृत्य है, और हर नृत्य में उसकी आत्मा बोलती है।” — डॉ. अंजलि ठाकुर, सांस्कृतिक शोधकर्ता।

हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक नृत्य इस पर्वतीय राज्य की जीवंत आत्मा और उसकी गहरी लोक चेतना का प्रतीक हैं। यह केवल मनोरंजन के साधन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, धार्मिक श्रद्धा और सांस्कृतिक निरंतरता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

आज जब आधुनिकता ने दुनिया को बदल दिया है, हिमाचल के लोक नृत्य अब भी उसकी पहचान बने हुए हैं — जहाँ हर ताल में पर्वतीय जीवन की झंकार है और हर घूमाव में इतिहास की सांसें।

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