Post by : Shivani Kumari
ऊना जिले के एक ग्रामीण क्षेत्र में बिजली की चपेट में आकर एक व्यक्ति की दुखद मौत ने स्थानीय समाज, पीड़ित परिवार और प्रशासन को गहरा झटका दिया है। उस दिन राम लाल, जो अपने खेतों में सिंचाई के लिए बिजली चालू करने गए थे, अचानक खुले तारों के संपर्क में आ गए। बिजली का तेज झटका लगते ही वे बुरी तरह झुलस गए। आसपास मौजूद ग्रामीणों ने उन्हें त्वरित चिकित्सा सहायता देने की कोशिश की और अस्पताल पहुंचाया, लेकिन डॉक्टर उन्हें बचाने में असमर्थ रहे।
यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि बिजली विभाग की लापरवाही और व्यवस्थात्मक कमियों की कहानी भी कहती है। परिवार के मुताबिक एक से अधिक बार विभाग में शिकायत की गई थी कि खेतों के साथ लगे बिजली के तार जर्जर हालत में हैं। कई महीनों से उन तारों की मरम्मत नहीं की गई, जिससे यह दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना घटित हुई।
राम लाल परिवार के अकेले कमाने वाले सदस्य थे। उनके पीछे उनकी पत्नी, दो छोटे बच्चे और बूढ़े माता-पिता हैं। परिवार की आर्थिक हालत पहले से ही कमजोर थी। घटना के बाद न केवल भावनात्मक बल्कि आर्थिक संकट भी उत्पन्न हो गया। जिला प्रशासन से परिवार मुआवजा और न्याय की गुहार लगा रहा है।
स्थानीय जनता का कहना है कि विभागीय कर्मचारी हमेशा निरीक्षण और मरम्मत के दावों के बावजूद कई बार लापरवाही करते हैं। विभाग की ओर से नंगे तारों की मरम्मत तुरंत किए जाने का नियम है, फिर भी जमीनी स्तर पर सुधार देर-सवेर ही होता है। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि न तो उपभोक्ताओं को जरूरी उपकरण दिए जाते हैं और न ही सुरक्षा संबंधी जानकारी साझा की जाती है।
हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड द्वारा जारी नियमों के अनुसार, खुले या जर्जर तारों की मरम्मत प्राथमिक स्तर पर और तत्काल होनी चाहिए। इसके लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षण और उपभोक्ताओं को सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम उपलब्ध कराना जरुरी है। लेकिन बजट की कमी, कर्मचारियों की संख्या और व्यवस्थागत खामियों के कारण कई बार ऐसे हादसे होते रहते हैं। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में लोगों को दुर्घटना की स्थिति में क्या करना चाहिए, इसका प्रशिक्षण नहीं मिलता है।
हादसे के बाद जिला प्रशासन ने विभागीय लापरवाही की जांच के लिए एक समिति बनाई है। पीड़ित परिवार को तत्काल ₹2 लाख की राहत राशि दी गई है। जांच रिपोर्ट पंद्रह दिनों के भीतर सरकार के समक्ष प्रस्तुत की जानी है। प्रशासन ने वादा किया कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए ठोस दिशा निर्देश निर्धारित किए जाएंगे।
इस दुर्घटना का असर केवल पीड़ित परिवार तक सीमित नहीं है। सोशल मीडिया और गांव-समुदाय में, लोगों में नाराजगी है कि प्रशासन और विभाग अपनी जिम्मेदारी सही तरह से नहीं निभा रहे हैं। कई सामाजिक संगठनों ने बिजली सुरक्षा को लेकर जागरूकता अभियान चलाने की घोषणा की है। अब गांवों में स्कूल स्तर पर बिजली सुरक्षा, प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण और चिंता की अवस्था रिपोर्ट करने संबंधी कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी।
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या बिजली विभाग की मौजूदा व्यवस्थाएं ग्रामीण क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त हैं? घटना के बाद तो जांच, मुआवजा और चर्चा होती है, लेकिन वास्तव में व्यवस्था में बदलाव तभी आएगा जब नीति निर्धारण, कर्मचारियों की संख्या और कड़े दिशा-निर्देशों को सफलतापूर्वक लागू किया जाएगा।
समाज, प्रशासन और विभाग को मिलकर यह तय करना होगा कि बिजली सुरक्षा को लेकर जागरूकता का स्तर सिर्फ निर्देशों में ही न रहें बल्कि हर गांव, हर घर तक पहुँचे। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि केवल उपकरण या नियम से सुरक्षा संभव नहीं, बल्कि लोगों की समझ, सतर्कता और विभागीय जवाबदेही भी उतनी ही जरूरी है।
यह विस्तृत रिपोर्ट पोस्ट-मॉर्टम तथ्यों, विभागीय अर्गुमेंट्स, परिवार के अनुभव और प्रशासनिक प्रतिक्रिया के आधार पर तैयार की गई है। अगले भाग में विभागीय जांच के निष्कर्ष, स्थानीय प्रतिक्रिया, तकनीकी विश्लेषण, नीति संबंधी सुझाव और विषय विशेषज्ञ की राय विस्तार से प्रस्तुत की जाएगी।
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