Post by : Shivani Kumari
मंडी से सांसद और अभिनेत्री कंगना रनौत का बठिंडा कोर्ट मामला किसान आंदोलन से जुड़ा एक संवेदनशील प्रसंग बन गया है। दिसंबर 2020 में केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में जब पंजाब व हरियाणा के किसान दिल्ली की सीमाओं तक आंदोलन कर रहे थे, तभी कंगना ने सामाजिक माध्यम पर एक पोस्ट साझा की थी। उस पोस्ट में उन्होंने पंजाब की बुजुर्ग महिला किसान महिंदर कौर को शाहीन बाग की कार्यकर्ता बिलकिस बानो बताने की गलती की थी और साथ ही लिखा था कि वे सौ रुपये लेकर धरनों में बैठती हैं। यह पोस्ट हटा दी गई, पर तब तक किसानों और महिला संगठनों में तीखी प्रतिक्रिया शुरू हो चुकी थी। किसानों ने इसे किसान महिलाओं का अपमान बताया और इसके विरुद्ध मानहानि का मुकदमा दायर हुआ।
महिंदर कौर ने वर्ष 2021 की शुरुआत में बठिंडा अदालत में शिकायत दायर की, जिसमें उन्होंने कहा कि उनके बारे में कंगना रनौत ने असत्य और अपमानजनक बयान दिया जिससे समाज में उनकी प्रतिष्ठा को गहरा आघात हुआ। उसी शिकायत पर बठिंडा अदालत में मुकदमा चलता रहा। कंगना ने प्रारंभिक चरण में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से अपने विरुद्ध दर्ज केस रद्द करने की गुजारिश की, परंतु अदालत ने इसे खारिज कर दिया। उसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका डाली, जिसे न्यायधीशों ने यह टिप्पणी करते हुए अस्वीकार किया कि यह केवल एक सामान्य रीट्वीट नहीं था बल्कि उनके द्वारा सार्वजनिक रूप से कही गई बात में सामाजिक मसाला जुड़ा था।
इस आदेश के बाद अदालत ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया। बीते सोमवार को वे बठिंडा की अदालत में स्वयं उपस्थित हुईं। अदालत परिसर को उच्च सुरक्षा क्षेत्र घोषित किया गया था। भारी पुलिस बल और मीडिया की मौजूदगी में कंगना अदालत पहुंचीं। उन्होंने अपने अधिवक्ताओं के साथ अदालत में पेश होकर कहा कि यह पूरा मामला गलतफहमी का परिणाम था, उनका उद्देश्य किसी का अपमान करना या किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना नहीं था। उन्होंने कहा कि उन्होंने केवल एक वायरल मीम को देखा और बिना विस्तार से जांचे उसे साझा कर दिया।
कंगना ने अदालत में यह भी कहा कि वे प्रत्येक मां और महिला का सम्मान करती हैं, चाहे वे पंजाब की हों या हिमाचल की। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि महिंदर कौर उनके लिए सम्माननीय हैं और वे उन्हें माता के समान मानती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने कौर के पति के माध्यम से उन्हें अपनी बात पहुंचाई है और कहा कि इस पूरी परिस्थिति में जो गलतफहमी फैली उससे उन्हें खेद है। अदालत ने उनकी जमानत अर्जी स्वीकार की और उन्हें अंतरिम राहत प्रदान करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 24 नवंबर निर्धारित की।
महिंदर कौर के पति लाभ सिंह ने अदालत में कहा कि यह मामला केवल उनकी पत्नी का नहीं बल्कि महिलाओं और किसान समाज के सम्मान से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि माफ़ी को स्वीकार करने का निर्णय किसान यूनियनों और सामाजिक संगठनों से विचार-विमर्श के बाद ही लिया जाएगा। अदालत के बाहर भी सामाजिक कार्यकर्ताओं, कृषक नेताओं और मीडिया ने मामले पर विस्तार से चर्चा की। किसान संगठनों ने कहा कि माफ़ी की वास्तविकता का मूल्यांकन समाज की सामूहिक भावना से किया जाएगा।
इस पूरी प्रक्रिया ने समाज में एक बड़े विमर्श को जन्म दिया कि सार्वजनिक जीवन में रहने वाले व्यक्तियों को अपने वक्तव्यों और अभिव्यक्तियों में कितनी सावधानी रखनी चाहिए। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह केवल एक मानहानि का मामला नहीं बल्कि महिला सम्मान का प्रश्न है। उन्होंने कहा कि समाज में महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले बयान किसी भी स्तर पर स्वीकार्य नहीं हैं।
कंगना का यह मामला कृषि आन्दोलन की महिला भागीदारी, सोशल मीडिया की शक्ति, और न्यायपालिका की संवेदनशीलता को प्रतिबिंबित करता है। विविध समाचार संस्थानों, चैनलों और पोर्टलों पर यह खबर प्रमुखता से चली। लोग सोशल मीडिया पर इस विवाद को महिला आत्मसम्मान और लोकतांत्रिक संवाद की कसौटी पर देख रहे हैं। अनेक सामाजिक विश्लेषकों का मत है कि यह घटना इस बात की पुष्टि करती है कि संवाद के डिजिटल युग में जिम्मेदारी का अर्थ भी अधिक गहरा हो गया है।
इस घटनाक्रम ने हिमाचल प्रदेश और पंजाब के बीच राजनीतिक दृष्टि से भी चर्चा को जन्म दिया है। हिमाचल में उनके समर्थकों ने कहा कि यह अच्छा है कि उन्होंने माफी मांगी और सम्मान का भाव रखा, वहीं कुछ लोगों ने यह तर्क दिया कि ऐसी स्थितियों में नेताओं को पहले ही शब्दों का वजन समझना चाहिए।
कनूनी दृष्टि से देखा जाए तो बठिंडा अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि मानहानि जैसे मामलों में आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक होती है। अदालत ने किसानों की संवेदना और शिकायत की गंभीरता को भी स्वीकार किया।
अब यह मामला महिला सम्मान व सामाजिक संवाद दोनों का एक प्रतीक बन गया है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि महिंदर कौर और किसान यूनियनें कंगना की माफ़ी को स्वीकार करती हैं या नहीं। परंतु यह तथ्य निर्विवाद है कि इस घटना ने समाज को यह सोचने पर विवश किया है कि भाषण की आज़ादी के साथ संवेदनशील जिम्मेदारी भी जरूरी है।
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