कुल्लू के झनियार गांव में भीषण आग से दर्जनों घर राख, ग्रामीणों में अफरा-तफरी
कुल्लू के झनियार गांव में भीषण आग से दर्जनों घर राख, ग्रामीणों में अफरा-तफरी

Post by : Shivani Kumari

Nov. 10, 2025 4:06 p.m. 348

झनियार गांव की इस भयावह आग ने पूरे कुल्लू जिले को झकझोर दिया है। सोमवार दोपहर जब लोग अपने रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त थे, तभी गांव में अचानक उठी आग की लपटों ने सब कुछ बदलकर रख दिया। समाचार एजेंसी के संवाददाताओं द्वारा घटनास्थल से मिली जानकारी के मुताबिक, आग इतनी भीषण थी कि देखते-ही-देखते करीब बारह आवासीय मकान, तीन गोशालाएं और चार बड़े घास भंडार पूरी तरह राख हो गए। आग के डरावने मंजर को लेकर गांव की एक बुज़ुर्ग महिला ने कहा—“हमने अपनी आंखों के सामने बच्चों का घर उजड़ते देखा। पूरी ज़िंदगी की कमाई, पालतू पशु, और धार्मिक वस्तुएं, सब कुछ आग में स्वाहा हो गया।”

अग्निशमन विभाग को खबर मिलते ही राहत गाड़ियां भेजी गईं, लेकिन तीर्थन घाटी तक सड़क संकरी और पहाड़ी होने के कारण दमकल दल मौके तक नहीं पहुंच पाया। ऐसे में ग्रामीणों ने ही बाल्टियों, मिट्टी और टपकियों से आग बुझाने का प्रयास किया। स्थानीय पंचायत और प्रशासन ने पीड़ित परिवारों को पंचायत भवन, स्कूल तथा अन्य सुरक्षित स्थानों पर अस्थायी ठहराव दिलाया। तिरपाल, कंबल, खाद्यान्न, दवाइयां और गर्म कपड़ों का वितरण फौरन शुरू कराया गया। महिला मंडल और सामाजिक संगठन भी राहत में सक्रिय रहे।

एसडीएम बंजार ने मौके पर पहुंचकर राहत वितरण की निगरानी की। प्रशासन की त्वरित कार्रवाई के बाद मुख्यमंत्री ने नष्ट मकानों के पुनर्निर्माण हेतु सात लाख, गोशाला के लिए पचास हजार, किराना व अन्य अनिवार्य वस्तुओं की सहायता का ऐलान किया। साथ ही गांव में स्थायी अग्निशमन केंद्र, सड़क निर्माण और वन सलाहकार समिति द्वारा क्षेत्र की सफाई पर भी ज़ोर दिया गया।

विशेषज्ञ मानते हैं कि हिमाचल के गांवों में घर पारंपरिक पहाड़ी शैली के—मुख्यतः लकड़ी, पत्थर और मिट्टी के होते हैं—जिनमें सूखी घास और लकड़ी जमा रहती है। ऐसे मौसम में थोड़ी सी लापरवाही बहुत बड़ा संकट बना सकती है। गांववालों का दर्द सिर्फ आर्थिक नहीं, सांस्कृतिक भी है—आग ने पारिवारिक वंशावली, उपासना-स्थल, देवमूर्ति, और पूजा के तमाम प्रतीक भी खाक कर दिए।

सोमवार रातभर प्रशासन, सामाजिक संगठन व स्वयंसेवक राहत कार्य में लगे रहे। गांववाले अब भी सहमे हैं, लेकिन उनकी आंखों में एक नई उम्मीद है—“हमारा गांव फिर बसेगा, हम एक बार फिर सब कुछ खड़ा करेंगे, यही हिमाचल की असली पहचान है।”

झनियार की यह दर्दनाक घटना न केवल प्रशासन के लिए चेतावनी है, बल्कि पूरे पहाड़ी समाज को आपदा प्रबंधन, सड़क, आवास सुधार और सामुदायिक जागरूकता की आवश्यकता भी याद दिलाती है। अगर आपको प्रशासनिक आंकड़े, इनसाइड स्टोरी, राहत वितरण और पुनर्निर्माण प्रक्रिया पर और विश्लेषण या जमीनी साक्षात्कार चाहिए, तो आदेश दें।

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