हिमाचल प्रदेश में जैविक खेती तेजी से बढ़ रही है, किसानों की आय बढ़ रही है और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित हो रहा है।
हिमाचल प्रदेश में जैविक खेती तेजी से बढ़ रही है, किसानों की आय बढ़ रही है और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित हो रहा है।

Post by : Shivani Kumari

Oct. 8, 2025 3:29 p.m. 169

हिमाचल प्रदेश में जैविक खेती का तेजी से विकास: कृषि का समृद्ध भविष्य

हिमाचल प्रदेश में जैविक खेती किसानों की आय, पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी साबित हो रही है।

जैविक खेती: परिभाषा और महत्व

जैविक खेती वह कृषि पद्धति है जिसमें रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और हार्मोन का उपयोग नहीं किया जाता। इसके स्थान पर प्राकृतिक खाद, जैविक कीटनाशक और पारंपरिक फसल चक्र प्रबंधन अपनाए जाते हैं।

"जैविक खेती सिर्फ एक कृषि पद्धति नहीं, बल्कि एक पर्यावरणीय दृष्टिकोण है। यह मिट्टी की उर्वरता बनाए रखती है, जल स्रोतों की सुरक्षा करती है और उपभोक्ताओं को रसायन-मुक्त उत्पाद देती है।" – डॉ. अनुराग शर्मा, कृषि वैज्ञानिक

हिमाचल प्रदेश में जैविक खेती का विस्तार

राज्य में लगभग 2,22,893 किसान जैविक और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों पर निर्भर हैं। ये किसान कुल 38,437 हेक्टेयर से अधिक भूमि में उत्पादन कर रहे हैं।

पिछले पांच वर्षों में जैविक फसलों की पैदावार में औसतन 12-15% की वृद्धि दर्ज की गई है।

सरकारी पहल और प्रशिक्षण कार्यक्रम

हिमाचल प्रदेश सरकार ने जैविक खेती के विस्तार के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं:

  • प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना
  • CETARA-NF स्वप्रमाणन प्रणाली
  • हिम-भोग ब्रांड के तहत विपणन सहायता
"हमारा उद्देश्य है कि हर किसान जैविक खेती की ओर आकर्षित हो और प्रदेश की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण दोनों को लाभ पहुंचे।" – राजेश ठाकुर, सचिव, कृषि विभाग

प्रमुख जैविक फसलें और उत्पादन

हिमाचल प्रदेश में जैविक खेती की प्रमुख फसलें हैं: सेब, स्ट्रॉबेरी, गेहूं, मक्का, हल्दी और मसाले।

2024-25 में गेहूं का उत्पादन 15% और मक्का तथा हल्दी में 12% की वृद्धि हुई।

न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार

सरकार ने जैविक उत्पादों के लिए उच्च MSP निर्धारित किए हैं:

  • मक्का: ₹40 प्रति किलो
  • गेहूं: ₹60 प्रति किलो
  • हल्दी: ₹90 प्रति किलो

"हिम-भोग" ब्रांड के तहत उत्पाद बेचे जा रहे हैं, जिससे किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी पहुंच मिल रही है।

किसानों की कहानियां

"हमने पूरी तरह से जैविक खेती अपनाई है। हमारी आय और मिट्टी की गुणवत्ता दोनों बेहतर हुई।" – सीमा कुमारी, शिमला
"हल्दी और मक्का की जैविक खेती से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अवसर मिला।" – रमेश कुमार, कुल्लू

पर्यावरणीय और सामाजिक लाभ

  • मिट्टी की उर्वरता बढ़ना
  • जल संरक्षण
  • कीट नियंत्रण में सुधार
  • ग्रामीण रोजगार सृजन

चुनौतियां

  • बाजार तक सीमित पहुंच
  • सड़क और लॉजिस्टिक की कमी
  • उपभोक्ता जागरूकता की कमी
  • प्रमाणन प्रक्रिया जटिल
  • उच्च कीमतें
"चुनौतियों का समाधान तकनीकी प्रशिक्षण और व्यापक जागरूकता अभियान से किया जा सकता है।" – विशेषज्ञ

भविष्य की संभावनाएं

हिमाचल प्रदेश जैविक खेती में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मॉडल बनने की दिशा में अग्रसर है। युवा किसान और कृषि छात्र इस हरित क्रांति में भाग ले रहे हैं। तकनीकी सहायता, मजबूत बाजार नेटवर्क और जागरूकता अभियान से राज्य की जैविक कृषि और भी सशक्त होगी।

हिमाचल प्रदेश में जैविक खेती एक स्थायी, पर्यावरण-मित्र और आर्थिक दृष्टि से लाभकारी कृषि पद्धति के रूप में उभर रही है। सरकारी नीतियों, किसान प्रयासों और शैक्षणिक संस्थानों के संयुक्त प्रयास से यह क्षेत्र और प्रगतिशील होगा। आने वाले वर्षों में यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और देश को स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराने में प्रमुख भूमिका निभाएगी।

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